आयुर्वेद चिकित्सा में अतिबला को यौन शक्ति वर्द्धक एवं उत्तम धातु पौष्टिक औषधि माना जाता है | यह आयुर्वेद के वाजीकरण द्रव्यों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है | प्राय: सम्पूर्ण भारत में आसानी से सड़क किनारे, खाली भूखंडो के आस – पास एवं रेलवे की पटरियों के पास देखने को मिल जाती है |
आज इस आर्टिकल में आपको अतिबला के बारे में सम्पूर्ण जानकारी, इसके फायदे, औषधीय गुण – धर्म, कौन – कौन से रोगों में उपयोगी है, अतिबला की पहचान एवं कहाँ उपलब्ध हो जाती है ? आदि के बारे में जानने को मिलेगा |
वैसे तो ‘जैसा नाम वैसा काम’ वाली कहावत इस औषधीय जड़ी – बूटी पर सटीक बैठती है | लेकिन बल वर्द्धन के अलावा भी अतिबला बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है | पुराने वैद्य एवं औषध द्रव्यों का ज्ञान रखने वाले इसे बल्य, ज्वरनाशक, कृमिनाशक, विषनाशक एवं गर्भ विकारों में उपयोगी मानते है |
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अतिबला की पहचान –
अतिबला सम्पूर्ण भारत में पैदा होने वाली वनस्पति है | यह सड़क – किनारे एवं खाली जमीन, गरम आबो – हवा वाली जगह पर अधिक देखने को मिलती है | राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, एवं दक्षिणी भारत आदि प्रदेशों में आसानी से देखने को मिल जाती है |
आयुर्वेद के बलाचतुष्ट अर्थात १. बला, २. अतिबला, ३. नागबला और ४. महाबला से सम्बंधित औषधि है | इसका झाड़ीनुमा पौधा होता है जो ५ से ६ फीट तक ऊँचा हो सकता है | पौधे पर जुलाई माह में पुष्प आने शुरू होते है एवं सर्दियों तक पौधा फुल एवं फलों से भर जाता है |
इस पर पीले रंग के फुल आते है | अतिबला के फल को देख कर आसानी से इसे पहचाना जा सकता है | फल चक्राकार होते है इसकी ये रेखाएं (जैसा फोटो में देख सकते है) निचे से शुरू होकर ऊपर आकर मिलती है |
अतिबला को पहचानने का सबसे आसान तरीका इसका फल है | आप बस फल की बनावट को ध्यान रखें आसानी से राह चलते पहचान जायेंगे |
औषधीय गुण धर्म
बलाचतुष्टयं शीतं मधुरं बलकान्तिकृत |
स्निग्धं ग्राही समिरास्त्रपित्तास्त्रक्षतनाशनम ||
बलामूल त्वचचूर्णं पीतं सक्षिरशर्करम |
मुत्रातिसार हरति दृष्ट्मेन्न संशय: ||
हरेन्महाबला कृच्छ्रम भवेद्वातानुलोमिनी |
हन्यादतिबला मेहं पयसा सितया समम् ||
आयुर्वेद के अनुसार अतिबला का रस में मधुर , गुणों में लघु, स्निग्ध, पिच्छिल होती है | इसका वीर्य शीत होता है अर्थात यह ठन्डे तासीर की होती है | इसका विपाक (पचने के पश्चात) मधुर होता है |
यह वीर्यवर्द्धक, बलकारक, अवस्थास्थापक, वात-पित नाशक और मूत्र रोग का नाश करने वाली होती है | इसकी छाल कड़वी, ज्वर निवारक, ज्वर निवारक एवं कीड़ों को ख़त्म करने वाली होती है |
अतिबला के फायदे या उपयोग
विभिन्न रोगों में इसके फायदे एवं उपयोग आप निम्न देख सकते है –
रसायन एवं बल्य औषधि
अपने मधुर एवं शीत वीर्य जैसे गुणों के कारण शरीर में धातु वर्द्धन का कार्य करती है | आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे उत्तम वाजीकरण द्रव्य माना गया है | वाजीकरण द्रव्य वे जड़ी – बूटियाँ होती है जो पुरुषों में काम शक्ति का संचार करती है |
मर्दाना ताकत के लिए अतिबला की जड़ के चूर्ण को दूध के साथ लम्बे समय तक सेवन करवाया जाता है |
वातविकार या दर्द
शरीर में विभिन्न जगह होने वाले दर्द में अतिबला के तेल का प्रयोग किया जाता है | आमवात, जोड़ो के दर्द एवं अन्य दर्द में इसके तेल को पानार्थ या आभ्यंतर मालिश के रूप में प्रयोग करवाते है |
यह शरीर में स्थित वातविकार को दूर करके दर्द (शूल) का नाश करती है | इसके इस्तेमाल से बला तेल एवं महाविषगर्भ तेल का निर्माण किया जाता है | ये दोनों ही तेल दर्द का शमन करने वाले होते है |
पेशाब की रूकावट
मूत्रकृच्छ अर्थात मूत्र त्याग में परेशानी होने पर इसके क्वाथ का प्रयोग किया जाता है | अतिबला से काढ़े का निर्माण करके इसे पीलाने से मूत्रकृच्छ की समस्या का अंत होता है |
काढ़े को बनाने के लिए अतिबला के २० ग्राम क्वाथ को ८०० ML पानी में उबाले जब पानी के चौथाई बचे तो इसे छान कर एवं ठंडा करके इस्तेमाल करें |
फोड़े – फुंसियाँ में अतिबला के फायदे
इसकी कोमल पतियों को बारीक़ पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े – फुंसी पर रखनी चाहिए और उसपर कपड़े का तह रखकर उस पर ठंडा पानी डालते रहना चाहिए |
इस प्रयोग से गाँठ में होने वाली जलन और झपका बंद होता है और अगर कोई गांठ है तो वह जल्दी पककर फुट जाती है |
बुखार होने पर
अगर आपको दाहयुक्त ज्वर या कंप एवं शीत ज्वर है तो अतिबला की जड़ और सौंठ का काढ़ा बना ले | काढ़ा बनाने के लिए दोनों को समान मात्रा में लेकर 8 गुना जल में उबालें | जब एक चौथाई जल बचे तब इसे आंच से उतार कर ठंडा करके सेवन करना चाहिए |
दो – तीन दिन के सेवन से ही कंप, शीत एवं दाहयुक्त ज्वर ठीक हो जाती है |
जंतु विष (जहर) में
अतिबला की जड़ को घिसकर लगाने से जानवर के काटे पर लगाने से जल्द ही जहर उतर जाता है | बिच्छु, ततैया आदि के जहर को उतारने के लिए अतिबला का प्रयोग पुराने समय से ही होता आया है |
अतिबला के पतों के काढ़े के फायदे
इसके पतों से क्वाथ का निर्माण करके खुनी बवासीर , सुजाक, प्रदाह, मूत्राशय की जलन एवं पैतिक आमातिसार में प्रयोग करवाया जाता है |
इन सभी रोगों में अतिबला के पतों का काढ़ा सेवन करने से लाभ मिलता है |
टीबी रोग में लाभदायक
टीबी में मुख्यत: मांस एवं बल का क्षय होता है | यह बल्य एवं मांसधातुवृद्धक होने से धातु का वृद्धन करती है | शुक्रधातु एवं औजवर्द्धन होने से यह टीबी रोग में शरीर को बल एवं औज लौटाने में सहायक होती है |
इस रोग में मुख्यत: बलाघृत का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक करवाते है |
प्रमेह रोग में उपयोगी
धातुक्षय जन्य प्रमेह में बलामूल त्वक चूर्ण को दूध एवं शक्कर के साथ प्रयोग करवाया जाता है | इससे धातुवृद्धन का कार्य होता है एवं प्रमेह में लाभ मिलता है | शुक्रमेह में इसके पंचांग स्वरस का प्रयोग करवाया जाता है |
घाव आदि में अतिबला के फायदे
किसी चोट का घाव हो या अन्य घाव सभी में इसके पंचाग से घाव को धुलवाया जाता है | उपदंश, फिरंग एवं क्षत (कटे) आदि में इसकी जड़ को पीसकर बाँधने से घाव ठीक होने लगता है |
अतिबला सेवन विधि एवं मात्रा
इसके प्रयोज्य अंग जड़, बीज एवं पंचांग होते है | इसके चूर्ण को १ से ३ ग्राम तक मात्रा में शहद, घी या दूध के साथ सेवन किया जाना चाहिए | आयुर्वेद चिकित्सा में इसके इस्तेमाल से विभिन्न औषध योग बनाये जाते है जैसे –
- बला तेल
- महाविषगर्भ तेल
- बलाघृत
- महानारायण तेल
- बलारिष्ट
- पुनर्नवारिष्ट
अतिबला के विभिन्न भाषाओँ में पर्याय
संस्कृत – शीतपुष्पा , वृषगंधिका, अतिवला, वल्या, वालिका |
हिंदी – कंघी, कंघनी, झम्मी |
गुजराती – कंसकी |
सिन्धी – खपटो |
मराठी – मुद्रिका, चिकना थेदला |
तमिल – पेड़दुति |
अंग्रेजी – Indian Mellow.
लेटिन – Abutilon Indicum.
धन्यवाद |