हरसिंगार (पारिजात) के औषधीय गुण – फायदे, उपयोग, गठिया में कैसे फायदेमंद है एवं पौधे का वर्णन

आयुर्वेद में बहुत सी औषधियां बताई गई है जिनका उपयोग चिकत्सा के लिए किया जाता है | हरसिंगार भी आयुर्वेद चिकित्सा की प्रमुख औषधीय वनस्पति है | इसके फुल , पते एवं बीज औषध उपयोगी है, जिनसे कई रोगों पर विजय हासिल की जाती है |

हरसिंगार
इमेज – हरसिंगार (परिवर्तित)

हरसिंगार की छोटी – छोटी सफ़ेद पंखुड़िया एवं सिंदूरी रंग का डंठल होता है | यह अपनी खुशबु के लिए प्रशिद्ध है | वानस्पतिक परिचय के रूप में देखा जाये तो यह छोटी झाड़ीनुमा वृक्ष है जो बढ़ कर 20 से 25 फीट ऊँचा भी हो सकता है |

इसकी त्वक हलके भूरे रंग की खुरदरी होती है | पौधे का डंठल कुछ नारंगी अर्थात हल्का लाल और पीले रंग का होता है | हरसिंगार के पते 7 से 12 सेमी लम्बे अखंड एवं धार युक्त होते है | इन्हें ध्यान से देखने पर ये धारयुक्त दिखाई पड़ते है |

हरसिंगार के फुल 1 से 2 सेमी व्यास के अति सुंगंधित होते है | इनसे एक मनमोहक खुसबू आती है | फूलों की पंखुड़िया सफ़ेद एवं पुष्पवृंत केशरिया रंग का होता है | इसके फल चिपटे, गोल एवं हरे रंग के होते है | हरसिंगार के बीज छोटे, गोल एवं चिपटे होते है |

पारिजात अर्थात हरसिंगार (इसे पारिजात भी कहते है) का वृक्ष प्राय हर जगह मिल जाता है | इसके फल शरद ऋतू में लगते है | अंग्रेजी में इसे Night Jasmine तथा Tree Of Sorrow कहा जाता है | संस्कृत में हरसिंगार को शेफालिया कहते है |

हरसिंगार के औषधीय गुण क्या है

यह स्वाद में तीखा , कड़वा एवं गुणों में रुखा और वातनाशक माना जाता है | अपने इन्ही गुणों के कारण यह संधिवात (गठिया), मांसपेशियों में दर्द, वातशूल एवं गुदा में दर्द जैसे वायु जनित रोगों में फायदा देता है |

रस – तिक्त |

गुण – लघु एवं रुक्ष |

विपाक -कटु

वीर्य – उष्ण

दोषकर्म – कफवात शामक, पित शोधन |

अन्य कर्म – जंतुघ्न, केश्य, दीपन, अनुलोमन |

रोगघ्नता – सायटिका, आमवात (गठिया), सन्धिवात एवं ज्वर में उपयोगी |

हरसिंगार के उपयोगी अंग – पते एवं त्वक (छाल) |

इसके स्वरस को 10 से 20 मिली एवं क्वाथ अर्थात काढ़े को 60 मिली तक लिया जा सकता है |

हरसिंगार के पते का का काढ़ा कैसे बनाये ?

आयुर्वेद पद्धति अनुसार किसी भी औषधि को ग्रहण करने के कई तरीके होते है | सबसे पहले इसका चूर्ण बना कर सीधा ही प्रयोग करें अगर औषधि सुखी है तो और अगर वह ताजा है तो इसका रस निकाल कर सेवन करने पर भी वह फायदेमंद रहती है |

सुखी वनस्पति से काढ़ा बना कर सेवन करना भी आयुर्वेद चिकित्सा की एक विधि है | हरसिंगार के पतों का काढ़ा बनाने के लिए सबसे पहले इसे एक निश्चित मात्रा में ले जैसे – आपने 100 ग्राम हरसिंगार के पते लिए तो अब इससे 4 गुना या 8 गुना जल लें |

अगर 100 ग्राम हरसिंगार के पते है तो आप 800 ग्राम जल लें | अब इसे मध्यम आंच पर उबाले जब पानी का एक चौथाई हिस्सा बचे अर्थात जब जल उबल कर 200 ग्राम रह जाये तो इसे आंच से उतार कर ठंडा करलें एवं छान कर सेवन करें | इस प्रकार से हरसिंगार के पते का काढ़ा बनाया जाना चाहिए |

हरसिंगार के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग विभिन्न रोगों में

वैसे तो यह वनस्पति हर घर में आसानी से मिल जाती है लेकिन अगर आपने इसके फायदे जान लिए तो निश्चित ही यह आपके घर में शौभित होगी , क्योंकि यह सामान्य से दिखने वाले गंभीर रोगों में अतिफायदेमंद साबित होती है | तो चलिए जानते है आयुर्वेद अनुसार हरसिंगार के फायदे एवं उपयोग –

1 . सभी वातविकारों में पारिजात के फायदे

आपने इसके औषधीय गुण पढ़ें, वहां पर भी हमने बताया था कि यह उत्तम वातविकार नाशक औषधि है | शरीर में वातवृद्धि से कई रोग उत्पन्न होते है जैसे – जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों का दर्द आदि | इन रोगों से बचने के लिए हरसिंगार का सेवन करना फायदेमंद रहता है |

वात विकारों में हरसिंगार के पतों का रस निकाल लें | इस रस को नियमित 5 से 10 मिली पीने से शरीर में स्थित अतिरिक्त वात नष्ट होती है एवं वात के कारण होने वाले दर्दों से राहत मिलती है |

2. हरसिंगार से गठिया का इलाज

जैसा आप सभी जानते है गठिया रोग मुख्य रूप से दूषित वात दोष के कारण होता है | शरीर में बढ़ी हुई यूरिक एसिड के कारण जॉइंट्स की लचक कम हो जाती है एवं परिणाम गठिया जैसे रोग की उत्पति होता है |

गठिया रोग में हरसिंगार के पतों का काढ़ा बना कर सेवन करना लाभदायक रहता है | आप इसके पतों से बने चूर्ण का सेवन भी कर सकते है |

3. गंजेपन में हरसिंगार के उपयोग

एक उम्र के बाद बालों का झड़ना एवं पकना स्वाभाविक प्रक्रिया है | लेकिन समय से पहले ही बाल झड़ने एवं पकने लगते है तो यह समस्या होती है | बहुत से लोग इस समस्या से निजात पाने की कोशिश करते है | उन लोगों के लिए पारिजात के बीजों का लेप बना कर प्रयोग करना फायदेमंद रहता है |

उपयोग करने के लिए हरसिंगार के बीजों को पत्थर पर पीसकर इसको लुगदी जैसा बना लें | इस लुगदी को प्रभावित स्थान पर लेप करने से बाल झड़ने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है | इस प्रयोग से बालों की रुसी एवं जूएँ भी खत्म होती है “

4. सायटिका में रामबाण है हरसिंगार

यह रक्तवाहिनियों की रूकावट को खोलकर सायटिका में आराम दिलाती है | साइटिका से पीड़ित को नियमित पारिजात के पतों का काढ़ा बना कर सेवन करना चाहिए | हरसिंगार के पते धीमी आंच पर पानी में उबाल कर काढ़ा बना लें | इस काढ़े का प्रयोग नियमित करने पर सायटिका में आराम मिलता है |

5. यकृत, कृमि एवं बवासीर में फायदेमंद

यकृत की वृद्धि, प्लीहा की वृद्धि, कीड़े एवं बवासीर जैसी समस्याओं में हरसिंगार अपने गुणों के कारण फायदेमंद रहता है | पेट के कीड़े, यकृत की वृद्धि या प्लीहा की वृद्दि में पारिजात के पतों का रस पिने से लाभ मिलता है |

बवासीर में इसके पतों का लेप बना कर या बीजों का लेप बना कर गुदा में स्थित मस्सों पर लगाने से लाभ मिलता है |

6. सुजन में फायदेमंद

किसी भी प्रकार की सुजन में हरसिंगार के पतों का रस निकाल कर उसे पानी में उबाल कर सेवन करने पर लाभ मिलता है | यह प्रयोग करते समय इस निर्मित कधें में थोड़ी सी हिंग डालदें | अब यह सभी प्रकार की सुजन को दूर कर देती है |

7. ज्वर में उपयोगी

विषम ज्वर, कफ जनित ज्वर या सामान्य ज्वर में हरसिंगार की छाल को लेकर इसको माध्यम आंच पर पकाकर काढ़ा बना लें | इस काढ़े को दिन में 2 बार सेवन पर ज्वर जल्द ही ज्वर दूर हो जाती है |

8. हृदय विकारों में हरसिंगार के फायदे

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हरसिंगार के फूलों का रस निकाल कर नियमित सेवन करने से हृदय के विकार दूर होते है | यह प्रयोग एक सिमित मात्रा एवं समय के लिए ही किया जाना चाहिए |

धन्यवाद |

5 thoughts on “हरसिंगार (पारिजात) के औषधीय गुण – फायदे, उपयोग, गठिया में कैसे फायदेमंद है एवं पौधे का वर्णन

  1. Ujjwala Rokde says:

    हरसिंघार के विषय में बहुत बढीया जानकारीं दि हैं। परंतु खेद पूर्वक कहना पड रहा है कि लेख सें जुडा हुआ फोटो किसीं भी पहलू सें हरसिंघार का नही है।
    कृपया सही फोटो डाले। धन्यवाद।

    • सम्पादकीय says:

      उज्जवल जी, माफ़ी चाहते है | दरशल creative commons में कोई भी फोटो उपलब्ध न होने एवं हमारे पास भी उपलब्धता नहीं हो पाने के कारण समदर्शी फोटो का उपयोग किया गया है |

      हम जल्द से जल्द इसे बदलने की कोशिश करेंगे |

      धन्यवाद |

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