टॉन्सिल्स (Tonsils in Hindi) – आयुर्वेद के अनुसार कारण, लक्षण एवं इलाज
जब मुंह में स्थित टॉन्सिल्स में सुजन आ जाता है तो उसे टोंसिलाइटीस कहते है | आयुर्वेद में इसे तुंडीकेरी शोथ कहा जाता है | यह मुखगत होने वाली प्रमुख व्याधि है | तुंडीकेरी मनुष्य के गले के पिछले हिस्से में स्थित एक अंग है जो बाहर से होने वाले इन्फेक्शनो से मनुष्य की रक्षा करती है | जब इसमें बाहरी बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण सुजन आ जाती है तब यह टॉन्सिल्स की सुजन कहलाती है |
आयुर्वेद में इसे रक्त व पित्त दोष की विकृति से हुआ रोग माना जाता है | टॉन्सिल्स में सुजन होने पर इसमें जलन , पाक एवं सुई के चुभन जैसी वेदना होने लगती है | रोग की तीव्रता पर बुखार, मवाद एवं खाना निगलने में परेशानी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है |
“शोथ स्थूलस्तोद दाहप्रपाकी प्रागुक्ताभ्या तुंडीकेरी मता तु ||”
टॉन्सिल होने के कारण
- बार बार प्रतिश्याय होना |
- जीवाणु संक्रमण (बैक्टीरियल इन्फेक्शन) होना |
- दूषित धुआं , धुल आदि के कारण
- अधिक मीठे खाद्यानो का सेवन
- मौसम परिवर्तन
- बच्चों को बार बार खांसी आना
इन सभी कारणों से टांसिलाइटिस होने का खतरा होता है | आधुनिक मतानुसार स्ट्रेपटोकॉकस पाइजेंस नामक बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण टॉन्सिल्स की समस्या होती है | अधिकतर देखा गया है कि टोंसिल की समस्या 4 से 14 साल के बच्चों में अधिक होती है |
टॉन्सिल के लक्षण
टोंसिल की सुजन में गले में सुजन आ जाती है | गले में बार – बार दर्द उठता है | रोगी के श्वास में दुर्गन्ध आती है एवं जीभ देखने पर मैली दिखाई देती है | सिर एवं गर्दन में दर्द शुरू हो जाता है | गले के दोनों तरफ की लसिका ग्रंथियों में व्रद्धी हो जाती है , अगर इन पर अंगुली भी रखी जाए तो रोगी को पीड़ा का अनुभव होता है | रोगी के सारे शरीर में दर्द, व्याकुलता एवं आलस्य जैसे लक्षण साफ़ दिखाई देते है |
- गले के पश्चिमी भाग में खुरदरेपन का अहसास होना |
- खाना निगलते समय दर्द का अनुभव |
- कंठ में कोई वस्तु रुकी हुई है एसा प्रतीत होना |
- अवसाद होना |
- शिरदर्द की समस्या |
- शीतलता का अनुभव |
- ज्वर आना |
- बच्चों में लार निकालने में परेशानी होती है |
- गले में बार – बार खराश होना |
- स्वर का भारी होना |
- खांसी आना और खाना निगलते समय परेशानी अनुभव होना |
टॉन्सिल का आयुर्वेदिक इलाज या उपचार
आयुर्वेद अनुसार टॉन्सिल्स के रोग में बच्चों को प्रात: काल सूर्य के प्रकाश में रखना चाहिए | बच्चे या बड़े को संतुलित आहार देना चाहिए | अगर रोग शीतकाल में हो तो बल्य औषधियों का सेवन करवाना चाहिए |
औषध योगों में कंठसुधारक वटी, खादिरादी वटी, त्रिकटु चूर्ण, पंचकोल चूर्ण, गोदंती, विभितकी चूर्ण, मधुयष्टी , आरोग्यवर्धिनी आदि औषधियों का उपयोग किया जाना चाहिए | साथ ही फिटकरी को गुनगुने पानी में डालकर गरारे करने से लाभ मिलता है |
टॉन्सिल होने पर करें घरेलु इलाज या देशी नुस्खे
- फिटकरी को गरम जल में डालकर मिलालें एवं दिन में 3 से 4 बार गरारे करें , आराम मिलेगा |
- ग्लिसरीन को कॉटन की सहायता से गले के अन्दर लगायें , लाभ मिलता है |
- अजवायन का चूर्ण करलें एवं साथ में फिटकरी मिलाकर गले के चारों और लगाने से आराम मिलता है |
- अगर टॉन्सिल्स को सुखाना हो तो तुलसी की मंजरी को शहद के साथ मिलाकर चाटें | जल्द ही टोंसिल सुख जाते है |
- सुखी पीसी हल्दी एवं अदरक को सादे पानी में डालकर सेवन करने से समस्या में आराम मिलता है |
- पीपल के पेड़ का दूध लेकर इसे गुनगुने पानी में मिलालें | इस पानी से गरारे करने से भी आराम मिलता है |
- एक चम्मच मुलेठी, 3 लौंग और 3 दाने पिपरमेंट – इन सभी का काढ़ा बना कर सेवन करने से आराम मिलता है |
- दालचीनी को पीसकर इसका महीन चूर्ण करलें | अब इस चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर बढ़ें हुए टॉन्सिल पर लगायें | जब लार छूटे तो उसे बाहर निकालदें |
टॉन्सिल में क्या खाएं – क्या नहीं ?
टोंसिलाइटिस होने पर गरम खाना , मिर्च मसाले, तेल खटाई और अम्लीय पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए | इन सभी चीजों की जगह सादे भोजन का सेवन फायदेमंद होता है | रोगी को खिचड़ी या दलिया आदि सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन का सेवन करवाना चाहिए |
फल आदि में चीकू, अन्नानास, अमरुद, पपीता आदि का सेवन किया जा सकता है | रोगी को आंवला, धनिया एवं पुदीने आदि की चटनी का सेवन करवाना चाहिए यह काफी फायदेमंद होता है | घी या तेल से तली हुई चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए | क्योंकि ये सभी चीजें टॉन्सिल में हानी पहुंचती है |
धन्यवाद् ||