वाजीकरण क्या है
परिचय – आयुर्वेद को आठ भागों में बांटा गया है | जिनमे से वाजीकरण एक प्रमुख भाग है | वाजीकरण शब्द का शाब्दिक अर्थ घोड़े के समान मैथुन क्रिया से युक्त होना होता है | अर्थात आयुर्वेद के अनुसार शुक्र के वेग, मात्रा एवं दुष्टता से सम्बंधित रोगों में बाजीकरण के माध्यम से विजय हासिल की जाती है | अगर साधारण शब्दों में समझा जाये तो पौरुष शक्ति से हिन् (कामशक्ति विहीन) पुरुषों को मैथुन क्रिया में सक्षम बनाने के लिए की जाने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा वाजीकरण कहलाती है |
वाजीकरण परिभाषा
वजनं वाज: शक्रस्य वेग: , स विद्यते येषांते वाजिन: ,अवाजिनो वाजन: क्रियन्तेनेनेती वाजीकरणम |
अर्थात एसा कार्य जिसके करने से अल्प, दुष्ट, क्षीण और शुष्क वीर्य वाले मनुष्यों के वीर्य की पुष्टि, शोधन, वृद्धि और उत्पति तथा स्वस्थ लोगों में मैथुन के समय हर्ष बढ़ाने के लिए उपाय एवं औषध का निर्धारण किया जाता है उसे वाजीकरण कहते है | इसमें प्रयुक्त होने वाले द्रव्यों के सेवन से पुरुष बलवान होकर अपनी इच्छानुसार स्त्रियों के साथ सम्भोग करता है एवं जल्द ही संतान प्राप्त करता है |
वाजीकरण में प्रयुक्त होने वाले द्रव्य
वाजीकरण द्रव्य से तात्पर्य उन सभी औषध द्रव्यों से है जिनका सेवन करने से व्यक्ति में मैथुन शक्ति की व्रद्धी होती है | इन द्रव्यों का इस्तेमाल करके वाजीकरण के लिए औषधियों का निर्माण किया जाता है | आचार्य चरक ने स्त्री को सर्वोत्म वाजीकरण द्रव्य माना है | क्योंकि स्त्रियों में अधिक प्रेम रहता है | चरक के अनुसार जो स्त्री सुन्दर, शुशील, संतानोत्पति वाली, धर्म, अर्थ एवं लक्ष्मी से प्रतिष्ठित रहती है वह अधिक वृष्य मानी जाती है |
आयुर्वेदानुसार वे द्रव्य जो रस में मधुर, स्निग्ध, जीवनीय, बृहण, गुरु और मन को प्रसन्न करने वाले हो वे सभी औषध द्रव्य वाजीकरण द्रव्य कहलाते है | इन द्रव्यों को 8 भागों में बांटा गया है –
- शुक्रलवर्ग – इसमें जीवक, ऋषभक, कांकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, मेदा, विधारा, श्वेत और रक्त घुमुची आदि |
- बलवर्द्धनगण – एन्द्री, केवांच, शतावरी, माषपर्णी, विदारीकन्द, अश्वगंधा, शालिपर्णी, रोहिणी, बला और अतिबला आदि द्रव्यों को बल वर्द्धक माना जात है |
- बृहनवर्ग के द्रव्य – क्षीरिणी, अश्वगंधा, काकोली, क्षीरकाकोली, श्वेत बला, पीतबला, राजक्षवक, बनकपास और केवांच आदि
- जीवनीयगण – जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, जीवन्ति और मुलेठी आदि द्रव्य जीवनीय द्रव्यों में आते है जिनको वाजीकरण द्रव्य के रूप में जाना जाता है |
- क्षीरसंजननवर्ग – विरण, शाली-षष्टिक, इक्षुवालिका, दर्भ, कुश, कास, गुंदा, कर्त्रिन्मुल आदि |
- शुक्रल और वाजीकरण – स्वर्णभस्म, रससिंदूर, कौंच बीज, सालममिश्री, विदारीकन्द, जायफल, जावित्री, उड़द, जुन्दबेद्स्तर आदि में कमोतेजक गुण अधिक होते है | अत: इनका प्रयोग भी वाजीकरण द्रव्यों के रूप में किया जाता है |
- वीर्यवर्द्धक द्रव्य – ये तालमखाना बीज, मुसली, सेमल का मूल, सेमल की गोंद, मुक्ता, प्रवाल, जीवन्ति, सिंघाड़ा एवं चिरोंजी आदि होते है |
- कमोतेजक द्रव्य – भांग, गांजा, धतुरा, कुचला, कर्पुर, प्याज, अकरकरा आदि द्रव्य वाजीकरण द्रव्य माने जाते है |
इन सभी द्रव्यों का इस्तेमाल वृष्य दूध के साथ किया जाता है जिससे ये शुक्रउत्पन्न करने वाले अंगों को शुद्ध करके अधिक शुक्र (वीर्य) उत्पन्न करवाते है | इन सभी के अलावा कुछ आयुर्वेदिक दवाएं है जिनका इस्तेमाल वाजीकरण के लिए किया जाता है |
वाजीकरण औषधियां
आयुर्वेद चिकित्सा में पुरुष को मैथुन शक्ति युक्त बनाने के लिए कई औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है | ये औषधियां चूर्ण रूप में , कुछ अवलेह, वटी या तेल आदि के रूप में होती है | वाजीकरण के लिए प्रयोग होने वाली आयुर्वेदिक औषधियां निम्न है –
- च्यवनप्राश – 10 से 20 ग्राम सुबह एवं शाम को गाय के दूध के साथ करना चाहिए |
- छुहारा पाक – 1 ग्राम की मात्रा में सुबह एवं शाम गोदुग्ध के साथ लिया जाता है |
- कामेश्वर मोदक – 3 ग्राम प्रात: सांय दूध के साथ |
- मद्नान्द मोदक – 5 ग्राम सुबह एवं सांय दूध के साथ |
- वानरी गुटिका – 5 से 10 ग्राम तक सुबह – शाम दो समय दूध के साथ लेना चाहिए |
- कामसुधा योग – 1 से 2 गुटिका प्रतिदिन दूध के अनुपान स्वरुप लेना चाहिये |
- अश्वागंधादी चूर्ण – 4 से 5 ग्राम दोनों समय दूध के साथ |
- कामदेव चूर्ण – 4 ग्राम सुबह – शाम दूध के साथ लिया जाना चाहिए |
- द्रक्षादी चूर्ण – 4 ग्राम तक सुबह – सांय |
- शातावार्यादी चूर्ण – 10 ग्राम दूध के साथ |
- नारसिंह चूर्ण – 5 ग्राम सुबह – शाम 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद के साथ मिलाकर चाटना चाहिए | इसके बाद गुनगुने दूध का सेवन ऊपर से किया जाना चाहिए |
- मदनप्रकाश चूर्ण – 4 ग्राम दूध के साथ |
- आनंददावटी – 1 गोली रात में सोने से 1 घंटा पूर्व |
- चन्द्रप्रभा वटी – 2 गोली सुबह एवं शाम |
- मकरध्वज वटी – 1 गोली सुबह -शाम मक्खन के साथ सेवन करनी चाहिए |
- कामदेव घृत – वाजीकरण औषधियां में इस घी का भी सेवन काफी फायदेमंद होता है | इसका सेवन 10 से 20 ग्राम सुबह – शाम मिश्री मिलाकर करना चाहिए | ऊपर से गरम दूध का उपयोग लाभदायक होता है |
- श्री गोपाल तेल – जननेंद्रिय पर इस तेल की मालिश करने से हर्ष बढ़ता है |
- कामाग्निसन्दीपन रस – यह उत्तम वाजीकरण औषधि रसायन है | इसका सेवन 500 मिग्रा की मात्रा में सुबह एवं शाम करना चाहिए |
- कामिनीविद्रावण – 1 गोली रात में सोने से 1 घंटा पूर्व सेवन करना चाहिए |
- त्रिलोक्य चिंतामणि रस – यह भी वाजीकरण औषधियां में आता है | इसका सेवन चिकित्सक 1 गोली सुबह एवं शाम 2 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण के साथ शहद मिलाकर करवाया जाता है |
- नवजीवन रस – 1 गोली सुबह – शाम अश्वगंधा चूर्ण 2 ग्राम शहद के साथ करना चाहिए |
- पुष्पधन्वा रस – 1 गोली सुबह – शाम मक्खन और मिश्री मिलाकर करना चाहिए |
- पूर्णचन्द्र रस – मक्खन एवं मिश्री मिलाकर सुबह एवं सांय काल में सेवन किया जाना चाहिए |
- मन्मथ रस – 1 गोली गरम दूध के साथ दोनों समय ली जानी फायदेमंद है |
वाजीकरण औषधियां सेवन करते समय क्या नहीं खाएं ?
वाजीकरण औषधियां का सेवन करते समय अधिक लाल मिर्च, गुड़, खटाई, तीक्षण, रुक्ष आदि भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए | हिंग, राई, बैंगन, सहिजन, करेला आदि अधिक तिक्त व् कषाय रस युक्त पदार्थो का सेवन बंद कर देना चाहिए | शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन भी वर्जित है | इनका सेवन करने से रसायन वाजीकरण व्यर्थ हो जाता है | अत: पथ्य एवं अपथ्य आहार – विहार का ध्यान रखना अति आवश्यक है | अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो तो कृपया अपने सोशल हैंडल जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप एवं ट्विटर आदि पर इसे शेयर करना न भूलें | धन्यवाद |
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श्री मान विकार को दूर किया जा सकता है | साइज़ को कम या ज्यादा करने वाली बातें बकवास है | शीघ्रपतन, धातु विकार, स्वप्न दोष आदि विकार दवाओं के सेवन से दूर हो सकते है |
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Ye upar jitni bhi aushadhiya btayi gayi hai inme se kisi ek ke sewan se Labh milega ya sabhi ka sewan krna padega
Kya konch pak evm pushpdanwa ras ko Saath me le sakte hai
रवि कुमार जी कौंच पाक के साथ पुष्पधन्वा लिया जा सकता है | लेकिन प्रथम ये सूचित करें कि पुष्पधन्वा के साथ क्या औषधीय योग प्रयोग कर रहें है ?
Badhiya jankari hai