तालमखाना क्या है
यह एक क्षुप जाति का पौधा है जो जलीय प्रदेशों में प्राप्त होता है | यह जमीन पर फैलती है एवं इसके पते लम्बे होते है, फुल नीले रंग के होते है | इसकी डालियां कांटेदार होती है | इस पौधे के फल गोल और कंटीले होते है | इस पौधे के बीजों को तालमखाना कहा जाता है |
आयुर्वेद चिकित्सा में इसके बीजों को उत्तम कामोद्दीपक गुणों से युक्त माना जाता है | इसके बीजो का इस्तेमाल पुरुषों के यौन रोगों मुख्यत: वीर्य में होने वाले विकारो को ठीक करने के लिए किया जाता है | इसे अलग क्षेत्रों में भिन्न नामों से जाना जाता है | संस्कृत में इसे कोकिलाक्षा, इक्शुरक, इक्शुगंधा, इक्षुबालिका आदि एवं हिंदी में कुलियाकाँटा आदि नामों से जाना जाता है |
तालमखाना एवं अन्य 20 आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियों के एक्सट्रेक्ट से बनी आयुर्वेदिक दवा “कामसुधा योग” एक अच्छी यौनशक्ति वर्द्धक दवा है | इसका प्रयोग शीघ्रपतन, धातु दुर्बलता, स्वप्नदोष जैसी समस्याओं में किया जा सकता है |
तालमखाना के औषधीय गुण
इसके पते स्वाद में मीठे, कड़वे और स्वादिष्ट होते है | ये स्निग्ध, पौष्टिक, कामोद्दीपक, निद्रालाने वाले तथा अतिसार, प्यास, पथरी, मूत्र सम्बन्धी रोग, प्रदाह, नेत्रविकार, शूल, शौथ (सुजन), जलोदर, उदररोग एवं कब्जियत में फायदेमंद होते है |
इसके बीजों का ही अधिक उपयोग चिकित्सार्थ किया जाता है | तालमखाना की तासीर शीतल होती है | यह खाने में स्वादिष्ट, कसैले और कडवे होते है | ये वीर्य को बढ़ाने वाले, गुणों में भारी, बलकारक, ग्राही, गर्भस्थापन गुणों से युक्त होते है |
इसका सेवन रक्त की अशुद्धि को हरता है | यह कफवातकारक एवं मलस्तंभक, दाह और पित्त की समस्या को हरने वाला होता है |
तालमखाना के फायदे एवं स्वास्थ्य उपयोग
इसकी जड़ें उत्कृष्ट शीतल, वेदनानाशक, बलकारक और मूत्रल होती है | इसके बीज स्निग्ध, कुछ मूत्रल और कामेन्द्रिय को उत्तेजना देने वाले होते है | इसके पंचांग की राख मूत्रल होती है | इसकी जड़ का काढ़ा सुजाक और बस्तीशोथ रोग में दिया जाता है | इसके देने से सुजाक की जलन कम होती है और पेशाब का प्रमाण बढ़कर रोग धुल जाता है | यकृत के विकारों में तालमखाना की जड़ का क्वाथ और पंचांग की राख दी जाती है |
तालमखाना के घरेलु प्रयोग
- अगर आप अनिद्रा रोग से ग्रषित है तो तालमखाने की जड़ों को पानी में उबाल कर क्वाथ तैयार करके पीना चाहिए | निरंतर सेवन से उचटी हुई नींद की समस्या ठीक हो जाती है |
- पत्थरी एवं मूत्रविकारों में तालमखाना के साथ गोखरू और एरंड की जड़ को दूध में घिसकर पिने से मुत्रघात, रुक रुक कर पेशाब का आना एवं पत्थरी की समस्या जाती रहती है |
- तालमखाने के पुरे पौधे को जलाकर इसकी भस्म (राख) बना ले | इस राख को कपड़े से छान कर सुखी बोतल में रखलें | जलोदर जैसे रोगों में जब इसकी ताज़ी जड़ें न मिलसके तब इसकी भस्म का सेवन करना चहिये | इसका सेवन करने के लिए एक चम्मच की मात्रा के गिलास पानी में डालकर अच्छी तरह हिला कर 20 – 20 मिली की मात्रा में दो – दो घंटे के अन्तराल से सेवन करना चाहिए | इस नुस्खे से जलोदर में बहुत फायदा मिलता है |
- तालमखाने की जड़ शीतल, कटु और पौष्टिक एवं स्निग्ध होती है | इसकी जड़ को एक ओंश की मात्रा में 50 तोले पानी के साथ 10 मिनट ओंटाकर निचे उतार कर छान लेना चाहिए | यह क्वाथ जलोदर, मूत्रमार्ग और जननेंद्रिय के रोगों में काफी लाभकारी होता है |
- कुष्ठ रोग में इसके पौधे के पतों का रस निकाल कर पीने से और पतों का शाग खाते रहने से लाभ मिलता है |
- इसके पौधे से प्राप्त गोंद को 1 ग्राम की मात्रा में कब्ज के रोगी को देने चमत्कारिक लाभ होता है |
- अगर शरीर में कंही सुजन हो तो इसकी जड़ को जलाकर बनाई गई राख को पानी के साथ सेवन करने से शरीर की सुजन में आराम मिलता है |
- आयुर्वेद के वाजीकरण योगों में तालमखाने का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है | यह कामोद्दीपक गुणों से युक्त होती है | इसके सेवन से जननेंद्रिय के विकारों में भी लाभ मिलता है | यह वीर्य को बढ़ाने एवं इसके विकारों को हरने वाला होता है |
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धन्यवाद ||
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