Post Contents
ब्राह्मी घृत / Brahmi Ghrit Hindi
परिचय – ब्राह्मी घृत आयुर्वेदिक स्नेह कल्पना के तहत तैयार होने वाला एक प्रशिद्ध औषधीय घी है | जो अपस्मार, स्मरण शक्ति, उन्माद एवं मष्तिष्क पॉवर बढ़ाने की एक उत्तम आयुर्वेदिक दवा है | इसके नित्य सेवन से स्मरण शक्ति का विकास होता है | व्यक्ति जल्दी ही पढ़े हुए ग्रन्थ याद कर लेता है | अपस्मार (मिर्गी) का यह काल है | आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश के अपस्मार अध्याय में इसके लिए कहा गया है कि –
ब्राह्मीरसवचाकुष्ठशंखपुष्पिशृतं घृतम |
पुराणं स्यादप्स्मारोन्मदगृहहरं परम ||
इसके अलावा यह बवासीर, सर्दी – जुकाम में भी उपयोगी औषधि है | बाजार में बैद्यनाथ ब्राह्मी घृत, पतंजलि, डाबर, धूतपापेश्वर आदि कंपनियों की आसानी से मिल जाती है | चिकित्सक से परामर्श करके ब्राह्मी घृत का सेवन किया जा सकता है | वैसे इसे घर पर भी निर्माण किया जा सकता है, जिसकी विधि यहाँ बताई है | लेकिन वैद्य फार्मासिस्ट ही इसका शाश्त्रोक्त निर्माण करने में निपुण होते है | अत: यह महज आपके ज्ञान वर्द्धन के लिए है ताकि आप आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण कैसे होता है , जान सकें
ब्राह्मी घृत बनाने की विधि
इस आयुर्वेदिक घृत के निर्माण में 6 प्रमुख घटक द्रव्यों की आवश्यकता होती है –
- ब्राह्मी स्वरस – 3200 ग्राम
- ब्राह्मी (कल्क द्रव्य के रूप में) – 50 ग्राम
- कुष्ठ (कल्क द्रव्य के रूप में) – 50 ग्राम
- शंखपुष्पि (कल्क द्रव्य के रूप में) – 50 ग्राम
- वचा (कल्क द्रव्य के रूप में) – 50 ग्राम
- गाय का घी (पाक द्रव्य के रूप में) – 800 ग्राम
सबसे पहले कल्क द्रवों से कल्क का निर्माण किया जाता है | कल्क निर्माण करने से तात्पर्य औषधियों को यवकूट कर के थोडा जल मिला लिया जाता है | अब एक कड़ाही में घी को मन्दाग्नि पर चढ़ा कर ब्राह्मी स्वरस एवं औषधियों के कल्क को डालकर मन्दाग्नि पर पाक किया जाता है | जब घी में उपस्थित पूरा जलियांश उड़ जाए तब इसे आंच से निचे उतार कर स्वांगशीत होने दिया जाता है |
स्वांगशीतल होने के पश्चात कांच के मर्तबान में सहेज लिया जाता है | इस प्रकार से ब्राह्मी घृत का निर्माण होता है | विधि भले ही आसन लगे लेकिन किसी भी आयुर्वेदिक औषध का निर्माण निपुण व्यक्ति को ही करना चाहिए | क्योंकि यही औषधि रोगनाशक सिद्ध होती है |
ब्राह्मी घृत के फायदे या स्वास्थ्य उपयोग
- अपस्मार (मिर्गी) के रोग में इसका आमयिक प्रयोग करवाया जाता है |
- स्मरण शक्ति के विकास में लाभ दायक है |
- मष्तिष्क का विकास होता है, पढ़ा हुआ जल्दी याद होता है |
- उन्माद (पागलपन जैसे) रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका सेवन बताते है |
- महिलाओं में गर्भ ठहराने में फायदेमंद है |
- स्वर को सुधरती है |
- शरीर का वर्द्धन करता है |
- शरीर की धातुओं का पौषण होता है |
- मष्तिष्क के लिए एक टॉनिक स्वरुप औषधि है |
- कुष्ठ रोग में भी फायदेमंद औषधि है |
- बवासीर में उपयोगी है |
- त्वचा विकार एवं वायु विकार में उपयोगी |
सेवन मात्रा एवं विधि
भैषज्य रत्नावली में ब्राह्मी घृत का वर्णन मिलता है | इसका सेवन 6 से 12 ग्राम प्रकृति के अनुसार दूध के अनुपान से ग्रहण करना चाहिए | दवा का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श से करना उचित एवं फायदेमंद होता है |
धन्यवाद |
Epilipsy 4 saal se bahut pareshan hu medicine khate 2 pagal sa ho Gaya hu lekin Dore phir bhi nhi rukte h … MRI report m mesiail temporal secalorsis Grade 1 aaya thaa.. pls. help me