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त्रिभुवनकीर्ति रस / Tribhuvan Kirti Ras In Hindi
आयुर्वेद रस रसायनों में वर्णित यह औषधि सभी प्रकार के तरुण ज्वर, वात एवं कफ प्रधान ज्वर आदि में प्रयोग की जाती है | आयुर्वेदिक रस रसायनों का प्रयोग हमेशां चिकित्सक की देख रेख में होता है, अत: त्रिभुवनकीर्ति रस का प्रयोग बिना वैध्य के परामर्श नहीं करना चाहिए | इन औषधियों को अगर गलत तरीके से लिया जाये तो सेहत के लिए नुकसान दायक भी हो सकते है |
इन्फ्लुएंजा, सर्दी खांसी के साथ बुखार का आना , छींके आना (एलर्जी) एवं वात एवं कफज विकारों में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका उपयोग करवाते है | लीवर एवं स्पलीन के उपचार के लिए भी त्रिभुवनकीर्ति रस का उपयोग किया जाता है, साथ ही यह पाचन को भी सुचारू करने में फायदेमंद होती है |
इस आयुर्वेदिक औषधि को ज्वरघन माना जाता है लेकिन संततज्वर में इसका सेवन नहीं करना चाहिए |
त्रिभुवनकीर्ति रस के घटक द्रव्य एवं बनाने की विधि
इस औषधि के निर्माण में निम्न औषध द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है |
- शुद्ध हिंगुल
- शुद्ध वत्सनाभ
- कालीमिर्च
- सोंठ
- छोटी पिप्पल
- शुद्ध सुहागा
- पिप्पलामुल
इन सभी औषध द्रव्यों को समान मात्रा में लिया जाता है |
त्रिभुवनकीर्ति रस बनाने की विधि / tribhuvan kirti ras preparation
सबसे पहले शुद्ध हिंगुल, शुद्ध वत्सनाभ, कालीमिर्च, सोंठ, शुद्ध सुहागा, छोटी पिप्पल एवं पिप्पलामूल – इन सभी औषध द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर इनका कपड छान चूर्ण कर लिया जाता है | अब तुलसी, अदरक, धतुरा एवं संभालू की पति इन सभी के रस की तीन – तीन भावना देकर, एक एक रति की टेबलेट्स बना ली जाती है | इन टेबलेट्स को छाया में सुखाकर पैकिंग की जाती है | बाजार में यह पतंजली, बैद्यनाथ, डाबर एवं श्री मोहता आदि कंपनियों की दवा आसानी से उपलब्ध हो जाती है | कई दवा निर्माता कम्पनिया इसे चूर्ण रूप में भी बनती है |
सेवन विधि
इसका सेवन चिकित्सक की देखरेख में किया जाना चाहिए | क्योंकि इस दवा में वत्सनाभ एवं हिंगुल जैसे औषध द्रव्य होने के कारण अधिक मात्रा या गलत अनुपान से लेने पर स्वास्थ्य हानि हो सकती है | प्रेगनेंसी के समय एवं छोटे बच्चों को इस दवा का प्रयोग नहीं करवाना चाहिए | इस दवा की उत्तम मात्रा 60 से 125mg तक मानी जाती है | अनुपान का निर्धारण चिकित्सक रोग के अनुसार करते है | अधिकतर तुलसी स्वरस, शहद, अदरक एवं शहद का अनुपान या किसी अन्य ज्वरघन कषाय के साथ करते है |
त्रिभुवनकीर्ति रस के फायदे / Benefits and Uses of Tribhuvan Kirti Ras in Hindi
निम्न रोगों में इस दवा का सेवन स्वास्थ्य लाभ देता है –
- फ्लू आदि की समस्या में आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका सेवन करवाते है |
- इन्फ्लुएंजा में भी फायदेमंद आयुर्वेदिक दवा है |
- नाक से छींके आना या एलर्जी की समस्या में उपयोग किया जाता है |
- ज्वर रोगों की यह उत्तम दवा है , लेकिन संततज्वर में इसका सेवन नहीं करना चाहिए |
- ब्रोंकटिस एवं टॉन्सिल्स में इसके सेवन से लाभ मिलता है |
- बुखार जैसी समस्या में यह पसीने के साथ बुखार उतरने का कार्य करती है | इसे स्वेदजनन औषधि माना जाता है |
- बुखार एवं वात के कारण होने वाले शारीरिक दर्द से छुटकारा दिलाती है |
- सभी प्रकार की लीवर एवं स्प्लिन के रोगों में फायदा करती है |
- पाचन को सुधरने में भी फायदेमंद है |
त्रिभुवनकीर्ति रस के नुकसान
इस दवा का सेवन चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करना चाहिए | इसे कभी भी स्वंय उपचार में प्रयोग न करें | प्रेगनेंसी एवं छोटे बच्चों को इसका सेवन नहीं करवाना चाहिए | अधिक मात्रा में सेवन करने से मादक प्रभाव के साथ जहरीली साबित हो सकती है | गलत तरीके से सेवन करने पर हृदय क्षेत्र पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है |
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धन्यवाद
Bahut achhi lagi. Sir tonsils ke liye kon se dava thek rahege