त्रिदोष नाशक औषधि: आयुर्वेद त्रिदोष सिद्धांत पर आधारित विज्ञानं है । जहाँ वात, पित्त एवं कफ इन तीनों को दोष माना जाता हैं । जब तक ये तीनों दोष साम्यवस्था में रहते हैं तो शरीर का धारण करते हैं परन्तु जब इनमे असंतुलन आ जाता है तब ये ही त्रिदोष शरीर में रोगों के कारण बनते हैं ।
इन्ही दोषों को ठीक करने के लिए अर्थात संतुलित करने के लिए आयुर्वेद में विभिन्न औषधियों को वर्णन किया गया है । ये औषधियाँ त्रिदोष नाशक औषधि कहलाती हैं । आज के इस आर्टिकल में हम आपको इन्ही प्रशिद्ध औषधियों के बारे में वर्णन कर रहें हैं । परन्तु इन सभी औषधियों को जानने से पहले त्रिदोष का सिद्धांत आपको जान लेना चाहिए ।
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त्रिदोष क्या है ?
त्रिदोष जिसे आप तीन दोषों (वात, पित्त एवं कफ) के रूप में पहचान सकते हैं । आयुर्वेद में दोष, धातु और मल इनको मूल आधार माना जाता है । कहा भी गया है कि “दुषणात दोषाः, धारणात धातवः” अर्थात जब वात, पित्त एवं कफ असाम्यवस्था में होते हैं तो रोग उत्पन्न करते हैं और जब ये अपनी स्वाभाविक स्थति में रहते हैं तो शरीर का धारण करते हैं । इसी प्रकार से त्रिदोष की साम्यवस्था का नाम पूर्ण स्वास्थ्य है ।
दोषधातुमल मूलं हि शरीरम्
आयुर्वेद
आयुर्वेद में दोष, धातु और मल इन तीनों को शरीर कहा गया है । अब यहाँ पर ये निर्धारित हो जाता है कि तीन दोष, सात धातुएं और तीन मल ये ही शरीर कहलाते हैं । इस सिद्धांत में भी त्रिदोष मुख्य हैं क्योंकि जब वात, पित्त एवं कफ दूषित होंगे तो ये धातुओं को दूषित करेंगे और धातुओं से मल में भी विकार उत्पन्न होगा अत: शरीर के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को अच्छा बना रहने के लिए त्रिदोष का सही साम्य अवस्था में रहना अत्यंत आवश्यक है ।
त्रिदोष नाशक औषधि कौन – कौनसी हैं आयुर्वेद में
यहाँ उपरोक्त में आपने त्रिदोष को अच्छे से समझ लिया अब अगर आपके शरीर में त्रिदोषों के दूषित होने पर आयुर्वेद में उनको सही करने के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक औषधीय योगों का वर्णन किया है । ये औषधियाँ शरीर में तीनों दोषों अर्थात वात, पित्त एवं कफ इन तीनों को समान अवस्था में लाती हैं ।
यहाँ हम उन्ही औषधियों के बारे में बता रहें है जो तीनों दोषों को संतुलित करते हैं । क्योंकि आयुर्वेद में एसी औषधियाँ भी हैं जो किसी एक दोष को संतुलित करने अर्थात उसे कम या ज्यादा करने के लिए प्रयोग होती हैं तो इन दवाओं को हमने यहाँ पर सम्मिलित नहीं किया है । तो चलिए जानते हैं सबसे पहली त्रिदोष नाशक औषधि के बारे में
1. त्रिफला चूर्ण (Triphala Powder)
त्रिफला सबसे कॉमन आयुर्वेदिक औषधि है जिसके बारे में अधिकतर भारतियों को पता होता है । यह तीन फलों से बनने वाली आयुर्वेदिक दवा है । जिसमे आंवला, हरीतकी और विभितकी (आमला, हरड, बहेड़ा) का समान मिश्रण होता है । इन तीनों औषधीय फलों के सुखाये हुए चूर्ण को आपस में बराबर मात्रा में मिलाया जाता है । जिससे त्रिफला चूर्ण का निर्माण होता है । यह तीनों दोषों को बैलेंस करने के लिए सबसे उत्तम आयुर्वेदिक दवा है ।
इसके निम्न फायदे हैं:
- यह त्रिदोष नाशक औषधि है ।
- वात, पित्त एवं कफ तीनों को समान अवस्था में लाने का कार्य करती है ।
- कब्ज, एवं गैस में भी लाभकारी है ।
- यह सम्पूर्ण कायाकल्प आयुर्वेदिक औषधि है ।
- पाचन को सुधारने में भी उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है ।
- आँखों की रोशनी भी बढाती है त्रिफला ।
- इसे एंटी एजिंग आयुर्वेदिक औषधि माना जाता है ।
2. त्रिकटु चूर्ण (Trikatu Powder)
त्रिकटु चूर्ण भी आयुर्वेद की एक प्रशिद्ध शास्त्रोक्त औषधि है । इसमें तीन कटु औषधियों का मिश्रण होता है । जिसमे सौंठ, पिप्पली एवं कालीमिर्च इन तीनों कटु औषधियों के चूर्ण को समान मात्रा में मिलाकर इसका निर्माण किया जाता है । त्रिकटु भी तीनों दोषों को संतुलित करने का कार्य करती है । यह दोषों को सम्य्वस्था में लाने और उन्हें एक बैलेंस फॉर्म में लाने के काम आती है । जब त्रिकटु चूर्ण का इस्तेमाल किया जाता है तो शरीर में बिगड़े हुए सभी दोष एक अवस्था में आते हैं और त्रिदोष संतुलित हो जाते हैं ।
त्रिकटु चूर्ण के निम्न फायदे मिलते हैं:
- यह भी एक प्रशिद्ध त्रिदोष नाशक औषधि है ।
- खांसी एवं कफ रोग में लाभदायक है ।
- बढे हुए पित्त को ठीक करती है ।
- शरीर में अतिरिक्त वात को कम करने का कार्य करती है ।
- अपच एवं पाचन को सुधारती है ।
- कफज विकार जिसे श्वसन विकारों में लाभदायक है ।
3. मधुरत्रय (Madhurtraya)
न्यूनाधिक मात्रा में एकत्र मिले हुए गुड़, घी और शहद के मिश्रण को मधुरत्रय के नाम से जाना जाता है । यह आयुर्वेदिक औषधि भी त्रिदोष नाशक मानी जाती है । इसमें गुड़, घी एवं शहद का अनुपात भिन्न – भिन्न लिया जाता है । इन्हें समान मात्रा में नहीं मिलाया जाता । इस तरह से मिली हुई इन तीनों को आयुर्वेदिक औषधि माना जाता है । इसका सेवन करने से वात, पित्त एवं कफ संतुलित होते हैं ।
मधुरत्रय के फायदे निम्न हैं:
- मधुरत्रय के सेवन से तीनों दोषों का संतुलन होता है ।
- यह औषधीय योग जुकाम में कार्य करता है ।
- वात को साम्यवस्था में लाने का कार्य करता है ।
- बढे हुए पित्त को भी ठीक करने का कार्य करती है ।
- इस प्रकार यह त्रिदोष नाशक औषधि में गिनी जाती है ।
- शरीर का संवर्धन करने के लिए भी यह औषधीय दवा लाभदायक है ।
4. मकरध्वज रसायन (Makardhwaj Rasayana)
मकरध्वज रसायन भी एक उत्तम किस्म की आयुर्वेदिक दवा है । जिसे वात, पित्त एवं कफ इन तीनों को संतुलित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है । यह शरीर में बल वर्द्धन, एवं पौष्टिकता देने के लिए सबसे प्रशिद्ध रसायन है । मकरध्वज रसायन का इस्तेमाल किसी भी रोग के कारण आई कमजोरी को दूर करने के लिए विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है । यह वाजीकरण दवा के रूप में भी विख्यात है । इसका सेवन करने से पित्त संतुलित होता है एवं वातवाहिनी नाड़ियों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है ।
मकरध्वज रसायन के निम्न फायदे मिलते है:
- त्रिदोष नाशक औषधि के रूप में विख्यात है ।
- वात, पित्त एवं कफ को संतुलित करने के लिए उपयोगी है ।
- शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए लाभदायक है ।
- वीर्य विकारों को दूर करता है ।
- रोगों के कारण आई कमजोरी को दूर करता है ।
- मकरध्वज रसायन के त्रिदोष बैलेंस करने के लिए लाभदायक है ।
5. पंचकोल चूर्ण (Panchkol Powder)
पंचकोल चूर्ण पांच प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों से मिलकर किया जाता है । यह पीपल, पिपलामुल, चव्य, चित्रक एवं सोंठ इन पांचो जड़ी बूटियों से मिलकर बनती है । ये पांचो औषधीय द्रव्य वात, पित्त एवं कफ को संतुलित करने का कार्य करते हैं । इसीलिए पंचकोल चूर्ण को भी त्रिदोष नाशक औषधि माना जाता है । आयुर्वेद चिकित्सा में पंचकोल चूर्ण का सेवन तीनों दोषों के दूषित होने पर भी किया जाता है ।
पंचकोल चूर्ण के निम्न फायदे है त्रिदोष शामक के रूप में :
- यह उत्तम त्रिदोष शामक आयुर्वेदिक औषधि है ।
- यह भूख बढ़ाने के कार्य करता है ।
- पाचन की विकृति को ठीक करता है ।
- कफ, या वात के कारण आने वाली भूख की कमी को ठीक करता है ।
- बढे हुए पित्त को भी संतुलित करने का कार्य करती है ।
सामान्य पुच्छे जाने वाले सवाल एवं जवाब
त्रिदोष नाशक औषधि का सेवन कौन कर सकता है ?
इन औषधियों का सेवन आयुर्वेदिक चिकित्सक की निगरानी में सभी व्यक्ति कर सकते हैं जिनमे तीनों दोष प्रकुपित हों
क्या ये औषधियाँ सुरक्षित हैं ?
हालाँकि सभी औषधियाँ नुकसान रहित हैं फिर भी सेवन से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की राय ले लेनी चाहिए ।
त्रिदोषों को कैसे संतुलित कर सकते हैं ?
त्रिदोषों को संतुलित करने के लिए आहार सुधार एवं आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन चिकित्सक परामर्शानुसार करने से संतुलित किया जा सकता है ।
वात, पित्त एवं कफ क्या कहलाता है ?
वात, पित्त एवं कफ को आयुर्वेद में त्रिदोषों के नाम से जाना जाता है । ये तीनों दोष शरीर का धारण करने एवं असंतुलित होने पर रोगों का कारण बनते हैं ।
आयुर्वेद अनुसार रोग क्यों होते हैं ?
आयुर्वेद अनुसार जब गलत आहार विहार का सेवन लम्बे समय तक किया जाता है तो तीनों दोषों में असाम्यवस्था आ जाती है । जिस कारण से शरीर रोग से ग्रसित हो जाते हैं ।