अम्लपित क्या है? – कारण, लक्षण व आयुर्वेदिक उपचार

अम्लपित को हाइपर एसिडिटी (Hyper acidity), एसिड डिस्पेप्सिया (Aciddyspepsia), गैस्ट्रोक्सिया (Gastroxia) आदि नामों से इसे जाना जाता है।

आमाशय में जब “अम्ल रस” की अधिकता होने लगती है, तब उसको “अम्लपित्त” रोग कहा जाता है। यह एक “पित्तजन्य” विकार है अर्थात जो पित्त दोष की वृद्धि से उत्पन्न होता है। अत्यधिक तीक्ष्ण, गरम, खट्टे पदार्थ व नमक के सेवन करने से तथा दूध, मछली आदि विरुद्ध भोजन, दूषित अन्न एवं अम्लपाकी औषधियों के सेवन से पहले का संचित हुआ पित्त विदग्ध होकर अम्लपित रोग उत्पन्न करता है।

अम्लपित्त रोग क्या है

अम्लपित क्या है ? | What is Hyper Acidiy in Hindi

हमारे शरीर में आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक एसिड पाया जाता है, जो भोजन के पाचन में सहायक होता है अर्थात भोजन के पाचन प्रक्रिया में सहायक होता है। जब यही हाइड्रोक्लोरिक एसिड अपने स्तर से अधिक  मात्रा में बनने लग जाए तो यह एसिड छाती की हड्डी के पीछे भोजन नली में जलन उत्पन्न करता है तथा खट्टी डकार, एसिडिटी जैसी समस्या उत्पन्न करता है जिसे अम्लपित्त कहते हैं।

अम्लपित्त रोग दो प्रकार का होता है।

  • ऊर्ध्वगामी_ऊॅची गति वाला: ऊपर का /ऊँची गति वाला अम्लपित रोग होने से नीले, पीले, काले, हरे, अत्यंत निर्मल, मछली के धोवन के समान, अत्यंत चिकने, कफ मिश्रित, तीखे एवं कड़वे रस वाले पित्त वमन अर्थात उल्टी में गिरते हैं।
  • अधोगामी_नीची गति वाला: नीचे के अम्लपित रोग में प्यास, जलन, मूर्छा (बेहोश होना), भ्रम, मोह, उबकाई आना, अग्नि का मंद होना, शरीर पर चकत्ते और रोमांच का होना, पसीने व शरीर में पीलापन आदि विकार होते हैं।

अम्लपित्त क्या है यह जानने के बाद अब हम अम्लपित होने के कारणों को जानेंगे तो चलिए जानते हैं

अम्लपित्त होने के कारण | Causes of Hyper Acidity

सामान्य भाषा में अम्लपित हाइड्रोक्लोरिक एसिड के अधिक बढ़ने से उत्पन्न होता है परंतु यह हाइड्रोक्लोरिक एसिड किन कारणों से बढता है जिससे अम्लपित रोग उत्पन्न होता है। जानते हैं शरीर में हाइड्रोक्लोरिक एसिड बढ़ने या अम्लपित होने के कारणों के बारे में

  • अधिक मिर्च मसाले युक्त भोजन करना या ज्यादा तला- भुना भोजन करना।
  • भोजन नियत समय पर न करना।
  • रात को भोजन करने के बाद तुरंत ही बिना टहले बिस्तर पर पड़ जाना या सो जाना।
  • अधिक धूम्रपान और मदिरापान तथा तंबाकू, गुटका, चूना अधिक मात्रा में सेवन करना।
  • अत्यधिक फास्ट फूड का सेवन करना
  • अत्यधिक मात्रा में या दिन में कई बार कॉफी और चाय का सेवन करना
  • ज्यादा मैथुन करना तथा रात्रि में जागना और दिन में अत्यधिक सोना
  • मानसिक तनाव और अत्यधिक शौक करना भी अम्लपित बढ़ाने में सहायक है।
  • अधिक मात्रा में खट्टे पदार्थों के सेवन करने से शरीर में पित्त दोष की वृद्धि होती है जिससे अमल एसिड या हाइड्रोक्लोरिक एसिड की भी मात्रा में वृद्धि हो जाती हैं।
  • पहले खाए हुए भोजन का पाचन न होने पर भी फिर से भोजन कर लेना अम्लपित्त रोग की उत्पत्ति करता है।
  • इन कारणों के अतिरिक्त अम्लपित्त होने में  एक और मुख्य कारण कुछ एलोपैथिक दवाओं का अधिक मात्रा में उपयोग करना भी है ।कुछ ऐसी दवाई जैसे-एस्पिरीन, पेरासिटामोल आदि यह शरीर में मुख्य रूप से अमल एसिड या हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा को बढ़ाती है जिससे अम्लपित्त रोग उत्पन्न होता है।

अम्लपित्त के कारणों को जानने के बाद अब हम अम्लपित होने के बाद उत्पन्न होने वाले लक्षणों के बारे में जानेंगे तो चलिए जानते हैं_

अम्लपित्त पित्त के लक्षण | Symptoms of Hyper Acidity

अम्लपित्त के रोगी को बिना भोजन किए ही कभी-कभी खट्टी व कड़वी उल्टी होती है, साथ ही में कड़वी व खट्टी डकारे आती है, कंठ ,हृदय और पेट में जलन होती है, सिर में दर्द, हाथ- पैरों में जलन, बदन गरम, अरुचि, शरीर में खुजली, शरीर पर चकते व फुंसियां होना आदि उपद्रव तथा हाथ – पैरों में जलन, शरीर का गर्म रहना, अत्यंत अरुचि होना यह अम्लपित के मुख्य लक्षण होते हैं।

अम्लपित रोग से ग्रसित रोगी की भूख कम हो जाती है तथा निर्बलता, अशक्तता, थकान, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, पैरों पैरों में दर्द होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। कुछ रोगियों को कब्ज की भी शिकायत मिलती है। शरीर में इस रोग में अम्ल की मात्रा बढ़ जाने पर शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियां निकल जाती है। जिनमें से हल्की खुजलाहट भी होती है। अरुचि के कारण खाने की इच्छा नहीं होती और मुंह का स्वाद भी खराब हो जाता है। रोगी बेचैन रहता है और नींद में कमी आ जाती है।

इस रोग से पीड़ित रोगी की छाती के मध्य में जलन होती है, आंखों में भी जलन होती है, माथे पर भी तपन प्रतीत होती है, हाथों की हथेली और पैरों के तलवों में भी जलन होती है। मूत्र लाल – पीले रंग का आता है, मल त्याग के समय मल गरम लगता है। इस प्रकार पित्त संपूर्ण बदन में जलन और गर्मी उत्पन्न करता है।

अम्लपित की प्रारंभिक अवस्था में जलन के लक्षण कम दिखाई देते हैं। जब रोग बढ़ जाता है तब जलन के लक्षणों में भी वृद्धि होने लगती है। रोगी को निरंतर ऐसा आभास होता है कि उसके शरीर में हल्का ज्वर ( बुखार) है परंतु ज्वरनाशक औषधि के सेवन से भी यह लक्षण दूर नहीं होता और न ही थर्मामीटर के प्रयोग से ज्वर का पता चलता। हर समय उसका बदन बुखार से टूटता रहता है।

अम्लपित के बारे में कारण, लक्षण जानने के बाद अब हम इसके आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जानेंगे, तो चलिए जानते हैं अम्लपित का आयुर्वेदिक उपचार

अम्लपित्त का आयुर्वेदिक उपचार | Remedies for Hyper Acidity

  • दूब नामक घास और बथुआ की पत्तियां 3-3 ग्राम लेकर खूब धोकर साफ स्वच्छ कर, चबाकर खाने से भी अम्लपित में लाभ मिलता है।
  • मूली के रस में जरा सी शक्कर मिलाकर सेवन करना भी अम्लपित में हितकर होता है।
  • ग्वारपाठे का रस एक चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सवेरे निकालकर सेवन करना गुणकारी होता है।
  • नीम के पत्ते और आंवले का काढ़ा सेवन करना अम्लपित्त रोग में परम कल्याणकारी होता है।
  • नारियल की गिरी की राख 6 ग्राम प्रतिदिन सुबह के समय सेवन करना लाभकारी होता है। यह परीक्षित प्रयोग है।
  • चूने का निथरा हुआ जल 10 ग्राम सेवन करने से अम्लपित्त और बदहजमी रोग नष्ट हो जाते हैं। यह प्रयोग भी परीक्षित है।
  • अदरक और परवल के पत्तों का काढ़ा सेवन करने से अग्नि दीपन होती है, भोजन का पाचन होता है और उल्टी, खुजली, चकत्ते, जलन, फोड़े यह सब नष्ट हो जाते हैं।
  • गिलोय, चीता, परवल और नीम के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। यह रोग परीक्षित है।
  • नीम की कोंपल, नीम की निंबोली और नीम की छाल प्रत्येक समान मात्रा में लेकर पीस लें और चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में सुबह के समय खाली पेट जल के साथ सेवन करना लाभप्रद है।
  • किसमिस, हरङ, पीपर, धनिया, जवासा और मिश्री प्रत्येक समान भाग के बनाए गए चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त नष्ट हो जाता है। यह प्रयोग परीक्षित है।
  • काकड़ा सिंगी और परवल 10-10 ग्राम लेकर 250 ग्राम जल में उबालें। 60 ग्राम जल शेष रह जाए तब उतारकर छान कर उसका काढ़े के सेवन करने से कफ और पित्त जन्य अम्लपित नष्ट हो जाता है।
  • हींग, हरड़, दालचीनी, पीपल, सोंठ और काला नमक प्रत्येक 5-5 ग्राम की मात्रा में लें और पीसकर कपङछान कर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार भोजन के बाद सेवन करना अम्लपित्त में बहुत ही लाभकारी है।
  • परवल, कुटकी और त्रिफला इनके काढ़े में मिश्री मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त नष्ट होता है। यह प्रयोग परीक्षित है।
  • आंवला ,सोंठ चित्रक, अजमोदा, इलायची और सेंधा नमक प्रत्येक समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें ।इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन गर्म जल के अनुपान के साथ सेवन करना हितकर होता है।
  • अग्निमुख चूर्ण आधा-आधा चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार भोजन के बाद सेवन करने से अम्लपित्त, कब्ज, मंदाग्नि और अपच में लाभ होता है।
  • छोटी पीपर,हरङ और चीनी- प्रत्येक 3-3 ग्राम लेकर प्रतिदिन खाने से 5-6 दिनों में ही श्लेष्मा और पित्त युक्त अम्लपित्त नष्ट हो जाता है। यह परीक्षित प्रयोग है ।
  • अडूसा, गिलोय और कष्टकारी के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करने से अमलपित्त तथा रक्तपित्त, खांसी व ज्वर नष्ट हो जाता है।

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