अणु तेल – जानें इसकी निर्माण विधि, फायदे एवं स्वास्थ्य लाभ

अणु तेल / Anu Tailam 

आयुर्वेद में उर्ध्वजत्रुगत (गर्दन से ऊपर) रोगों के लिए अणु तेल का उपयोग नस्य के रूप में किया जाता है | सिरदर्द, पुराना जुकाम, नाक की एलर्जी (छींके आना, पानी पड़ना आदि) एवं साईनाइटिस आदि समस्याओं में अणु तेल का नस्य लेने से इन रोगों में चमत्कारिक लाभ मिलता है | नस्य का अर्थ नाक से दवा लेना ही होता है | अगर आपको पुराना जुकाम, नया या पुराना साइनाइटिस, एलर्जी, आँखों की समस्या, समय से पहले बालों का झड़ना एवं सिरदर्द (आधा या पूरा) आदि की समस्याएँ रहती है तो निश्चित रूप से अणु तेल का प्रयोग करना काफी फायदेमंद होता है | साथ ही इसके उपयोग से आँख, नाक एवं गले की नशों को मजबूती मिलती है |

अणु तेल

आयुर्वेद में इस तेल को त्रिदोषघन एवं सभी इन्द्रियो के लिए बल्य माना है | आज हम आपको अणु तेल के फायदे, चिकित्सकीय उपयोग, इसकी निर्माण विधि एवं घटक द्रव्यों के बारें में बताएँगे |

अणु तेल के घटक द्रव्य / Ingredients of Anu Taila

इस आयुर्वेदिक दवा के निर्माण में लगभग 27 जड़ी – बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है | तिल तेल के साथ 27 अन्य औषधियों, अजा दुग्ध (बकरी का दूध) एवं जल आदि के सहयोग से अणु तेल का निर्माण किया जाता है | इसके निर्माण में प्रयोग होने वाले आयुर्वेदिक औषध द्रव्य (जड़ी – बूटियां) निम्न सारणी में दी गई है –

क्रमांकद्रव्य का नाम (जड़ी – बूटी)मात्रा
1.श्वेत चन्दन50 ग्राम
2.मधुयष्टी50 ग्राम
3.अगरु50 ग्राम
4.दालचीनी50 ग्राम
5.नागरमोथा50 ग्राम
6.तेजपता50 ग्राम
7.सारिवा50 ग्राम
8.बला50 ग्राम
9.दारूहरिद्रा50 ग्राम
10.जीवन्ति50 ग्राम
11.शालपर्णी50 ग्राम
12.पृशनपर्णी50 ग्राम
13.देवदारु50 ग्राम
14.कटेरी50 ग्राम
15.केवटीमोथा50 ग्राम
16.सुक्ष्मैला50 ग्राम
17.सुगंधबाला50 ग्राम
18.नीलकमल50 ग्राम
19.कुंदरू50 ग्राम
20.खस50 ग्राम
21.बिल्व50 ग्राम
22.वाय विडंग50 ग्राम
23.प्रपौन्द्रिक50 ग्राम
24.शतावरी50 ग्राम
25.वृहती50 ग्राम
26.पद्मकेशर50 ग्राम
27.रेणुका50 ग्राम

मुख्य घटक द्रव्य 

  • तिल तेल – 1.3 लीटर
  • अजा दुग्ध – 1.3 लीटर
  • जल क्वाथ निर्माण के लिए 130 लीटर जो क्वाथ निर्माण पश्चात 13 लीटर बाकी बचता है |

अणु तेल की निर्माण विधि / Method of Manufacturing

सबसे पहले 1 से लेकर 27 तक की जड़ी – बूटियों का यवकूट चूर्ण किया जाता है ताकि इनसे क्वाथ का निर्माण किया जा सके | क्वाथ निर्माण के लिए 130 लीटर जल में इन सभी औषध द्रव्यों के यवकूट चूर्ण को डालकर मन्दाग्नि पर पकाया जाता है | जब जल 13 लीटर बचे तो इसे छानकर अलग पात्र में रखा जाता है | फिर एक स्टील के पात्र में तिल तेल को डालकर उसे 9 बार पकाया जाता है | प्रत्येक बार 1.3 लीटर क्वाथ को तिल तेल में डालकर पकाया जाता है | इस प्रकार से लगभग 9 बार तिल तेल को सिद्ध किया जाता है | अंत में दसवीं बार तिल तेल के साथ 1.3 लीटर क्वाथ और 1.3 लीटर बकरी का दूध डालकर फिर से पकाया जाता है | इस प्रकार 10 बार सिद्ध करने के पश्चात अणु तेल का निर्माण हो जाता है | आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर यह patanjali anu tel ke fayde, दिव्य अणु तेल, बैद्यनाथ अणु तेल, धूतपापेश्वर, सुपचार हर्बल्स आदि आयुर्वेदिक फार्मेसियों का आसानी से उपलब्ध हो जाता है | यहाँ जो भी प्रोसेस बताई गई है वह पतंजलि, बैद्यनाथ आदि सभी कंपनियां की समान होती है |

अणु तेल के फायदे या स्वास्थ्य लाभ / Health Benefits of Anu Tailam

  1. नाक की एलर्जी में अणु तेल का नस्य लेने से लाभ मिलता है |
  2. अगर सिरदर्द हो चाहे आधे सिर का दर्द या पुरे सिर का दर्द तो इसका नस्य लेने से जल्द ही सिरदर्द से मुक्ति मिलती है |
  3. अणु तेल आँख, नाक, गले एवं कानों की सभी इन्द्रियों को बल प्रदान करती है | अत: इनसे सम्बंधित सभी रोगों में फायदा मिलता है |
  4. नाक से गंध न आती हो, पानी पड़ता हो या बार छींके आती हो – इन सभी में अणु तेल का नस्य लेने से उत्तम परिणाम मिलते है |
  5. इसके नस्य से नाक में स्थित या गले में अटका हुआ कफ बाहर निकलता है |
  6. मष्तिष्क को बल मिलता है |
  7. वात दोष के कारण गर्दन का हिलना जैसे रोगों में भी आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका सेवन बताते है |
  8.  जीर्ण प्रतिश्याय अर्थात साईंनाइटिस के रोग में अणु तेल का प्रयोग लाभदायक होता है |
  9. यह त्रिदोषहर आयुर्वेदिक तेल है जिसके सेवन से सभी विकारों का शमन होता है |
  10. मन्यास्तम्भ अर्थात गर्दन तोड़ बुखार में इसका सेवन लाभप्रद होता है |

अणु तेल का नस्य कैसे व कब लेना चाहिए ? 

आयुर्वेद के अनुसार अणु तेल को सर्दियों के मौसम में, गर्मियों में प्रयोग किया जाना चाहिए | बरसात के मौसम में इसका नस्य नही लेना चाहिए | सुबह उठने के बाद अपने नित्यकर्मो से निपटने के बाद ही इसका नस्य लेना चाहिए | सीधी अवस्था में लेट कर 2 से 3 बूंद नाक में डालकर कुछ समय के लिए लेटे रहना चाहिए | कफ आदि निकले तो उसे थूक दें | भूखे पेट , शौच से पहले, गिले सिर में एवं गर्भवती महिलाओं को इसका नस्य नही लेना चाहिए | धन्यवाद | 

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