सोरायसिस (Psoriasis) क्या है ? इसके कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज

सोरायसिस क्या है ? (What is Psoriasis in Hindi)

सोरायसिस – यह रोग त्वचा का बहुत ही सामान्य रोग है जो लगभग 10 साल से ऊपर के लोगों में अधिक देखने को मिलता है | पुरुष एवं महिला दोनों इस रोग से समान रूप से प्रभावित हो सकते है | इस रोग में पीड़ित की त्वचा पर एक प्रकार की मोटी परत बनने लगती है जिस पर लाल रंग के चकते एवं खुजली के साथ जलन जैसे लक्षण प्रकट होते है | त्वचा पर यह मोटी परत त्वचा का निर्माण करने वाली कोशिकाओं के अधिक सक्रीय होने के कारण बनती है |

सोरायसिस / Psoriasis

सोरायसिस में त्वचा पर बनने वाले चकते (scalps) अधिकतर गर्दन, हाथों की हथेलियों के बीच, पैरों की अँगुलियों के बीच , घुटनों एवं पीठ पर अधिक बनते है | इन चकतों में तीव्र खुजली होती है जो रोगी को असहनीय हो जाती है | यह रोग अनियमित अन्तराल से रोगी को कई वर्षो तक होता रहता है , क्योंकि सोरायसिस स्व प्रतिरक्षी रोग है जो कुच्छ समय के लिए अपने आप ठीक हो जाता है एवं कुच्छ समय के अन्तराल बाद पुन: व्यक्ति को जकड लेता है | वैसे इसे असंक्रामक रोग माना जाता है , लेकिन फिर भी रोग की गंभीरता पर शरीर पर पपड़ियाँ एवं मवाद आदि आने के बाद रोगी को थोड़ी स्वच्छता बरतनी चाहिए एवं अपने इस्तेमाल किये हुए कपड़ों आदि को अच्छी तरह धुप में सुखाना चाहिए | सोरायसिस में पपड़ी एवं मवाद आदि आने के कारण ही लोग इसे संक्रामक समझने लगते है , लेकिन ऐसा नहीं है की यह संक्रामक बीमारी है |

सोरायसिस के कारण / Cause of Psoriasis in Hindi 

इस रोग के कारण अज्ञात है | पारिवारिक इतिहास इसका मुख्य कारण माना जा सकता है | क्योंकि जिनके माता – पिता को सोरायसिस है  उनकी संतानों को भी इस रोग से ग्रषित होने का खतरा रहता है | आयुर्वेद में त्वचा रोगों का मुख्य कारण विरुद्ध आहार (जैसे शीत – उष्ण, गुरु – लघु, मधुर – लवण, रुक्ष – स्निग्ध आदि का सेवन) एवं अपथ्य आदि का सेवन माना जाता है | शराब एवं तम्बाकू का अधिक सेवन भी त्वचा विकारों का कारण बन सकता है | आयुर्वेद के अनुसार जब विरुद्ध आहार, अपथ्य आहार एवं शराब आदि का अधिक सेवन करने से शरीर में स्थित वात एवं कफ दूषित हो जाते है साथ ही त्वचा की साफ़ – सफाई न रखने के कारण शरीर में विष की अधिकता होकर इस प्रकार के त्वचा रोग का कारण बनते है |

सोरायसिस के लक्षण / Psoriasis Symptoms

इस रोग को आसानी से पहचाना जा सकता है | इसके लक्षणों में सबसे पहले त्वचा पर किसी जगह लाल रंग के चकते हो जाते है, जिनपर शुरुआत में हलकी खुजली एवं बाद में पपड़ी जमने लगती है | ये चकते शुरुआत में किसी एक जगह होते है एवं बाद में त्वचा पर अन्य जगह भी होने लगते है | इसकी अधिक गंभीरता में इन लाल रंग के चकतों पर तीव्र खुजली होती है , चकतों पर अधिक खुजाने से खून आने का डर रहता है | कुच्छ समय बाद इन पर पपड़ी जमने लगती है | सोरायसिस की फुंसियों की शुरुआत गर्दन , कोहनी एवं घुटनों पर होती है जो आगे चलकर सम्पूर्ण शरीर को घेर लेते है | जब कभी भी इस प्रकार की फुंसियाँ दिखाई दे तो निश्चित रूप से चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए | शुरूआती अवस्था में पता चलने पर इसका इलाज आसन हो जाता है एवं सोरायसिस क्योर करने में चिकित्सक को भी आसानी होती है |

सोरायसिस की फुंसियों की विशेषताएँ / Characteristics of Psoriasis pimples in Hindi

  1. ये फुंसियाँ विशेष रूप से कोहनी, घुटनों, खोपड़ी के बालों में पीछे की तरफ, हाथों पर एवं नाखूनों पर अधिक देखने को मिलते है |
  2. चेहरे पर सोरायसिस की फुंसियाँ बहुत कम ही देखने को मिलती है | (देखें इमेज ⇓)
  3. ये लाल पैप्युलर फुंसियाँ होती है जो घाव करती है एवं बाद में इनपर पपड़ी आने लगती है | अगर इनको खरुंचा जाए तो निचे चांदी जैसा चमकीला रंग दीखता है |
  4. विशिष्ट प्रकार के घाव शुष्क रहते है जिनपर संक्रमण नहीं होता एवं खुजलाहट भी कम होती है |
  5. शरीर पर घावों का फैलाव अत्यधिक भिन्न होता है | जैसे घुटनों या कोहनी पर फैले धब्बों का फैलाव भिन्न होता है |
  6. धब्बों की आकृति गोल रिंग के सामान होती है |
  7. कभी – कभी रोग की गंभीरता पर नाखूनों पर फैले ये धब्बे गहरे गड्डे में बदल जाते है , जिससे कभी – कभार नाख़ून ही अलग हो जाते है |
Psoriasis Pimples on body and clean face

सोरायसिस क्योर / Psoriasis Cure

रोग की शुरूआती अवस्था में विभिन्न प्रकार की दवाई लगाईं जा सकती है जो रोग को ठीक करती है | इसके मंद मामलों में कैलेमिन क्रीम फायदेमंद होती है एवं कार्टिसोन युक्त विभिन्न दवाइयाँ जैसे बेट्नोवेत आदि उपचार में सहायक होती है | लेकिन इन दवाइयों का प्रयोग कम करना चाहिए अर्थात तब ही करे जब चिकित्सक सुविधा मुहया न हो | रोग के गंभीर मामलों में आधुनिक चिकित्सा में विभिन्न प्रकार की दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है | कुच्छ क्रूड कोलतार युक्त दवाइयां इस रोग को रोकती है , लेकिन यह एक पुराना उपचार है एवं अधिक गंद्युक्त होता है | इसके अलावा मेथोटरक्षेत आदि इंजेक्शन या ओरल भी दी जाती है | इस प्रकार की दवाएं गंभीर मामलों में प्रभावी तो होती है लेकिन यकृत आदि पर इनका विपरीत असर पड़ता है |

सोरायसिस का आयुर्वेदिक इलाज / Ayurvedic Treatments of Psoriasis

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में त्वचा विकारों का वर्णन कुष्ठ रोगधिकार में किया गया है | इन कुष्ठ रोगाधिकार में 18 प्रकार के त्वचा रोग है | जिनमे से किटिभ रोग के लक्षण और सोरायसिस के लक्षण पूर्णत: मिलते है | आयुर्वेद के अनुसार सभी प्रकार के त्वचा रोग विरुद्ध आहार, अपथ्य का सेवन, मानसिक तनाव एवं वमन आदि का वेग रोकने से होते है | इन सभी के कारण त्वचा में विकारों एवं विषों का संचय होता है जो आगे चलकर रोग का कारण बनते है | इस रोग में वात एवं कफ दोष की प्रधानता होती है | अत: उपचार भी इसके अनुसार ही किया जाता है | रोगी की प्रकृति, उम्र, रोग की अवस्था एवं अन्य पहलुओं के आधार पर आयुर्वेद चिकित्सक रोग का इलाज करते है | सोरायसिस में रक्त एवं उत्तकों की शुद्धि के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक विधियों का प्रयोग किया जाता है | पंचकर्म चिकित्सा से सबसे पहले शरीर से दोषों को बाहर निकलते है | पंचकर्म के विभिन्न कर्म जैसे – स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन एवं रक्तमोक्षण के द्वारा दोषों का शमन किया जाता है | ये कर्म भी रोग की अवस्था एवं रोगी की प्रकृति पर निर्भर करते है | उदहारण के लिए अगर चिकित्सक सोरायसिस में कफ की प्रधानता देखता है तो वमन एवं विरेचन के माध्यम से दूषित कफ को बाहर निकाला जाता है | रक्त की अशुद्धि इस रोग में प्रधान होती है अत: चिकित्सक रक्तमोक्षण का इस्तेमाल भी करते है ताकि दूषित रक्त शरीर से निकल जाए | रक्त – मोक्षण के लिए जलोका या अलाबू आदि का प्रयोग करते है | ठीक ढंग से शरीर का शोधन करने के पश्चात ही चिकित्सक औषध योग का निर्धारण करते है | जिससे रोग के बचे हुए लक्षण भी समाप्त हो जाए | साथ ही रोगी को पथ्य आहार का सेवन अनिवार्य होता है | क्योंकि सोरायसिस के लिए आहार हमेशां उचित एवं सात्मय होना चाहिए | अगर रोगी अपथ्य का सेवन करता है तो निश्चित ही यह रोग कभी भी ठीक नहीं हो सकता है | वैसे सोरायसिस का पूर्ण इलाज संभव नहीं है , लेकिन फिर भी आयुर्वेद चिकित्सा से इसे तुरंत एवं लम्बे समय के लिए रोका जा सकता है |

सोरायसिस में क्या खाना चाहिए (सोरायसिस का आहार) / Psoriasis Diet  

रोगी विरुद्ध आहार एवं अपथ्य का सेवन बिलकुल भी न करे | विरुद्ध आहार में जैसे दूध के साथ नमक, दही के साथ मछली या दूध , तले – भुने पदार्थ, अधिक तीखे एवं चटपटे आहार आदि का सेवन न करे | हमेशां संतुलित आहार का सेवन करे | चिकित्सक के निर्देशानुसार आहार का सेवन करे | इस रोग में हरी पत्तेदार सब्जियां, फल जो विटामिन से भरपूर हो जैसे – गाजर, संतरा, तरबूज, सेब, अन्नानास, सीताफल आदि का भरपूर सेवन करे | हल्दी, लहसुन, नारियल का पानी भी इस रोग में लाभदायक होते है | लेकिन अगर आप इसका उपचार आयुर्वेद चिकित्सा से करवा रहे तो आपके चिकित्सक द्वारा बताया गया आहार एवं विहार का पालन अवश्य करे | सोरायसिस रोग की सम्पूर्ण जानकारी अंग्रेजी में पढ़ें यहाँ – Psoriasis Treatment

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