शास्त्रोक्त विधि से बनाये च्यवनप्राश – बढाए रोगप्रतिरोधक क्षमता |

च्यवनप्राश / Chywanprash

च्यवनप्राश आयुर्वेद की सबसे अधिक बिकने वाली औषधि है | रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने , रसायन व वाजीकरण के लिए इस औषध योग का सेवन पुरातन समय से ही होता आया है | आज भी सर्दियों की शुरुआत के साथ ही च्यवनप्राश का बाजार बढ़ने लगता है | लगभग सभी भारतीय सर्दियों के मौसम में जुकाम , खांसी, दमा और अन्य सर्दियों के कारण होने वाली बिमारियों से बचने के लिए च्यवनप्राश का सेवन करते है | लेकिन बाजार में मिलने वाले च्यवनप्राश कितना गुणकारी है ये हम सभी जानते है | आजकल हर औषधि का बाजारीकरण हो चूका है | अगर अमिताभ बच्चन किसी कंपनी के च्यवनप्राश का विज्ञापन करते है तो लोग उसे 100% प्रमाणिक मानते है | और बढ़-चढ़ कर उस च्यवनप्राश को खरीदते है | अब इससे कम्पनी को तो फायदा होगा लेकिन आपको इसका स्वास्थ्य लाभ मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है | शायद आपने महसूस भी किया होगा की च्यवनप्राश खाने के बाद भी आपकी सेहत में कोई खास फर्क नही पड़ा , क्यों ? दर:शल बाजार में मिलने वाले अधिकतर च्यवनप्राश सिर्फ आंवले और कुच्छ औषधियों का मिश्रण होते है | इनमे आंवला होने के कारण थोडा बहुत आपको लाभ भी मिलता है | लेकिन क्या ये च्यवनप्राश आपको सभी स्वास्थ्य लाभ देगा ! – नहीं |

च्यवनप्राश

अब बात आती है की कैसे च्यवनप्राश का पूर्ण लाभ उठाया जाए तो इसके लिए हमे च्यवनप्राश का इतिहास जानना होगा |

च्यवनप्राश का इतिहास

भार्गवश्च्यवन कामी वृद्धः सन् विकृतिं गतः।वीर्य वर्ण स्वरोयेत कृतोश्रिभ्या पुनर्युवा॥

च्यवनप्राश का निर्माण ऋषि चव्य को पुन: यौवन देने के लिए किया गया था | ऋषि च्यवन जिसे महर्षि भृगु भी कहते है उनका शरीर जब कृष और बुढ़ापे के कारण कमजोर हो गया तो , आयुर्वेद के महान वैद्य अश्वनी कुमारों ने एक औषध योग की खोज की जिसके सेवन से वृद्ध शरीर फिर से यौवन को प्राप्त कर सके | इन्होने बहुत सी औषधियां जो उस समय प्रयाप्त मात्रा में मिलती थी उनके योगों से इस औषध योग का निर्माण किया | इस औषध योग को बाद में ऋषि च्यवन के नाम पर च्यवनप्राश कहा जाने लगा | अश्विनी कुमारों ने अष्टवर्ग की औषधियां एवं अन्य औषध द्रव्यों के योग से इस च्यवनप्राश का निर्माण किया था |

ये अष्टवर्ग के औषध द्रव्य थे – ऋद्धि, वृद्धि, मेदा , महामेदा, ऋषभक , जीवक , काकोली और क्षीरकाकोली |

ये औषध द्रव्य वर्तमान समय में अज्ञात है | या यूं कहे की ये द्रव्य अब नही मिलते | इसलिए अब च्यवन ऋषि की तरह बुढ़ापे से यौवन में आना तो मुस्किल है | लेकिन हाँ अगर अन्य सभी औषधियों के इस्तेमाल से च्यवनप्राश बनाया जाए तो आज भी युवावस्था को बनाये रखने एवं रोगप्रतिरोधक क्षमता के लिए इससे अच्छी कोई औषधि नहीं है |

च्यवनप्राश के घटक द्रव्य

अगर आप च्यवनप्राश बनाना चाहते है तो सबसे पहले औषधियों के इन ग्रुप्स को समझे | च्यवनप्राश में प्रयोग होने वाले द्रव्यों को 5 भागों में बाँट सकते है – 1. मुख्य द्रव्य – आंवला 2. औषध द्रव्य – इसमें 38 औषधियां आती है जिनके इस्तेमाल से क्वाथ तैयार करना होता है | ये है –

बेल, गंभारी, अरनी, श्योनाक, शालपर्णी, पृष्णपर्णी, पारल, कटेरी दोनों (छोटी – बड़ी), गोखरू , पीपल, काकड़ाश्रंगी, मुन्नका, गिलोय, हरड, भूआमला, काकनासी, अडूसा, जीवन्ति, नागरमोथा, कचूर, पुष्करमूल, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, विदारीकन्द, सांठी, कमलगट्टा, इलायची, अगर, चन्दन अष्टवर्ग की जड़ी-बूटियों की जगह आप – अश्वगंधा , शतावरी , सफ़ेद मुसली, स्या मुसली, सफ़ेद बहमन, खरेंटी, शकाकुल (छोटी – बड़ी)

3. यमक द्रव्य – गाय का घी व तिल का तेल 4. संवाहक द्रव्य – योग को सुरक्षित रखने व खाने योग्य बनाने वाली चीनी | 5. प्रक्षेप द्रव्य – च्यवनप्राश में ऊपर से डाली जाने वाली औषधियां | ये है – दालचीनी, नागकेशर, इलायची, तेजपात, पिप्पली, वंशलोचन, केसर और शहद |

च्यवनप्राश बनाने की विधि / How to make Chywanprash in Hindi

च्यवनप्राश बनाने के लिए सबसे पहले ऊपर बताई गई सभी औषधियों किसी पंसारी की दुकान से खरीद ले | आंवला खरीदते समय ध्यान दे की यह अच्छी तरह पक्का हुआ हो | हम जो च्यवनप्राश बनाने जारहे है उसमे हमने 3 किलो आंवले लिए है | इन्ही आंवलो के आधार पर अन्य सभी औषधियों की मात्रा निर्धारित होगी | औषध योग मात्राआंवला – 3 किलो घी और तिल का तेल – प्रत्येक 250 ग्राम चीनी – 2 किलो औषध द्रव्य (जड़ी – बूटियां) –  सभी 38 औषध जड़ी – बूटियां प्रत्येक 30 ग्राम | प्रक्षेप द्रव्य – वंशलोचन – 80 ग्राम, दालचीनी – 50 ग्राम, नागकेशर – 20 ग्राम, तेजपता – 20 ग्राम, इलायची 20 – ग्राम, पिप्पली – 50 ग्राम और केसर – 2 ग्राम , शहद – 200 ग्राम |

बनाने की विधि

  • सबसे पहले 3 किलो आंवले ले और इन्हें अच्छी तरह साफ कर ले |
  • सभी औषध द्रव्य जो उपर बताये गए है उनको 30 – 30 ग्राम लेना है | अष्टवर्ग की औषध जड़ी-बूटियों की जगह आप अश्वगंधा, शतावरी, सफ़ेद मुसली, काली मुसली, सफ़ेद बहमन, खरेंटी, शकाकुल छोटी और बड़ी ले सकते है | बाकी सभी जड़ी – बूटियां ऊपर बताई गई ही लेनी है |
  • अब आठ किलो साफ़/शुद्ध पानी ले और इसे कडाही में गरम करने के लिए चढ़ा दे | इस पानी में सभी 38 औषधियां डालदे |
  • जब पानी एक चौथाई रह जाए तो आंच देना बंद कर दे |
  • दूसरी कडाही में आंवलो को उबालने के लिए डाले | ध्यान दे आंवलो में इतना ही पानी डाले की आंवले उबल जाए | जब आंवलों की फांके अलग होने लगे तब इसे बंद कर दे |
  • अब तैयार काढ़े में रात भर के लिए उबाले हुए आंवलो को डालकर रखदे |
  • सुबह आंवलो को काढ़े से अलग कर ले और काढ़े को छानले |
  • रातभर काढ़े के पानी में डूबे रहने से आंवलों में औषध काढ़े के सभी गुण धर्म आजाते है | इनका रंग भी कुच्छ अलग हो जाता है |
  • अब आंवलो की गुठली निकाल दे व मिक्सी में पिसले |
  • मिक्सी में पिसते समय इसमें थोड़ी – थोड़ी मात्रा में काढा मिलाते रहे जिससे की आंवले अच्छी तरह पिसजाये | इस तरह आंवलो की पिष्टी तैयार हो जायेगी |
  • च्यवनप्राश

  • आंवलो में जाले होते है , जो च्यवनप्राश को खराब कर देते है | अत: इन जालों को निकालने के लिए छलनी से पिष्टी को छाने |
  • पिष्टी को छानने से ये जाले निकल जाते है |
  • अब एक सुखी कडाही में 250 ग्राम गाय का घी और 250 ग्राम तिल का तेल डालकर इस पिष्टी को सुनहरा होने तक भुनले साथ में बचा हुआ काढ़ा (छाना हुआ) भी इसमें मिलादे |
  • पिष्टी के भूनने की सबसे अच्छी पहचान है कि जब यह अच्छी तरह भुन जाती है तो घी छोड़ देती है |
  • तीन किलो आंवलो की पिष्टी में 2 किलो तक चीनी डाल सकते है |
  • वैसे च्यवनप्राश में चीनी की चासनी बना कर डाली जाती है |
  • चासनी बनानी थोड़ी कठिन प्रक्रिया है इसलिए अच्छी तरह सिक्की हुई आंवले की पिष्टी में 2 किलो चीनी डालदे |
  • चीनी डालने के पश्चात कुछ समय के लिए इसे फिर से सेकें | ताकि चीनी के कारण पतला हुआ योग फिर से गाढ़ा हो जाए |
  • जैसे ही च्यवनप्राश गाढ़ा होने लगे इसे आंच से निचे उतार ले |
  • अब इस गरमा – गरम च्यवनप्राश में पिसे हुए प्रक्षेप द्रव्यों को डालदे |
  • जब यह अच्छी तरह ठंडा हो जाए तब इसमे 200 ग्राम शहद मिलाकर , किसी एयर टाइट डिब्बे में रखले | आपका च्यवनप्राश तैयार है |

इस च्यवनप्राश को सुबह – शाम एक – एक चम्मच खाए और ऊपर से 15 मिनट बाद गरम दूध पीवे |

च्यवनप्राश बनाते समय रखे जानेवाली सावधानियां

  • आंवले पक्के हुए और साफ – सुथरे ले |
  • आंवलो को अधिक नहीं पकावे |
  • घी व तेल को हमेशां सामान मात्रा में लेना चाहिए |
  • आंवलो की पिष्टी को सेकते समय हाथों और चेहरे को ढक कर रखे | क्योंकि सिकते समय उछलने के कारण आपके हाथ जल सकते है |
  • काढ़े को छानकर ही काम में लेना होता है | इसमें डाली गई जड़ी – बूटियों को छानकर अलग कर दे व काढ़े का ही इस्तेमाल करे |
  • आंवलो को पिसते समय इसमें थोड़ी – थोड़ी मात्रा में काढ़ा मिलाते रहने से आंवले आसानी से पिसते है |
  • आंवले की पिष्टी को छानना आवश्यक होता है |
  • आंवलो की पिष्टी को घी छोड़ने तक सेकना होता है |
  • साफ़ चीनी का इस्तेमाल करना चाहिए |
  • प्रक्षेप द्रव्यों को च्यवनप्राश बनने के पश्चात डाले , लेकिन च्यवनप्राश गरम होना चाहिए |
  • शहद का इस्तेमाल हमेशां च्यवनप्राश के ठंडा होने के बाद ही करना चाहिए | गरम च्यवनप्राश में कभी भी शहद को न मिलावे |

च्यवनप्राश के फायदे / Health Benefits of Chywanprash in Hindi

रोगप्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखने, बच्चो में होने वाली बार – बार की सर्दी जुकाम , बच्चों के इमुनिटी पॉवर , हृदय रोग, पाचन शक्ति को मजबूत बनाने आदि में च्यवनप्राश का कोई तोड़ नहीं है |

  • रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है |
  • सर्दी – जाकम व एलर्जी जैसे रोगों से रक्षा करता है |
  • बच्चों की सम्पूर्ण सेहत के लिए फायदेमंद है |
  • पाचन शक्ति को मजबूत करता है |
  • बुढ़ापे के लक्षणों को रोकता है |
  • मर्दाना ताकत में भी लाभकारी है |
  • दमा रोग में च्यवनप्राश का सेवन लाभ देता है |
  • च्यवनप्राश एंटीओक्सिडेंट गुणों से भरपूर होता है |
  • शरीर में स्थित टोक्सिन को बाहर निकालता है |
  • उम्र बढाता है |
  • महिलाओं के मासिक धर्म की दिक्कत में भी लाभ मिलता है |
  • सभी प्रकार के कफज रोगों में लाभ देता है |
  • यौन विकारों में फायदेमंद है |
  • लगातार सेवन से शरीर में जीवनी शक्ति का संचार होता है एवं व्यक्ति औजवान बनता है |
  • 50 से अधिक प्राकर्तिक औषधियों से निर्मित होने के कारण इसमें इन सभी औषधियों के गुण – धर्म पाए जाते है जो स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होते है |
  • वर्तमान समय के प्रदूषित वातावरण में इसका सेवन काफी फायदेमंद साबित होता है | क्योंकि यह शरीर से सभी प्रकार के दोषों का हरण करता है |

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