हैजा – कारण , लक्षण एवं उपचार
हैजा एक संक्रामक बीमारी है जो वाइब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु से फैलता है | भारत में इस बीमारी से मरने वालो की तादात अधिक है | यह मनुष्य में दूषित भोजन और दूषित जल के सेवन से फैलता है – हैजा मुख्य रूप से आंतो को प्रभावित करता है , जिसके कारण रोगी को तीव्र दस्त और उल्टी की शिकायत हो जाती है एवं अधिक दस्त लगने के कारण रोगी की मृत्यु भी हो जाती है |
अगर समय पर रोगी का उपचार एवं देखभाल न की जाये तो यह हैजे के रोगी के लिए घातक सिद्ध होता है | भारत में इस रोग के फैलने पर उचित इलाज न मिल पाने के कारण 60 % रोगी मौत का ग्रास बन जाते है |
हैजे के कारण
- दूषित भोजन एवं दूषित पानी का सेवन, जो वाइब्रियो कॉलेरी नामक जीवाणु से संक्रमित हो |
- रोगी व्यक्ति के सम्पर्क में रहने से और उसके उपयोग किये गए पदार्थो का इस्तेमाल करने से भी हैजा फैलने की सम्भावना रहती है |
- बाजार में मिलने वाले खुले खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल करने से |
- सीवरेज से उगाई गई सब्जियों के प्रयोग से भी हैजा फैलता है अत: बाजार से जो भी सब्जी ख़रीदे वह अच्छी तरह जाँच परख कर ख़रीदे |
- अपने आस पास गंदगी रखने से भी हैजा फ़ैल सकता है क्योकि इसका जीवाणु गंदगी में ही अधिक फैलता है |
- खाने को घर पर भी ढक कर रखे – क्योकि मक्खियाँ मनुष्य के मल पर बैठ कर ये जीवाणु अपने साथ ले आती है और इन्हें खाने पर छोड़ देती है जिससे हैजे के होने की सम्भावना अधिक हो जाती है |
- आयुर्वेद के अनुसार मिथ्या आहार – विहार के सेवन से हैजा रोग होने की सम्भावना होती है |
- दूषित, पर्युषित, अशुद्ध एवं बासी भोजन के सेवन से
- जनपदोंध्वंस के रूप में भी हैजा बसंत और ग्रीष्म ऋतू में अधिक फैलता है |
हैजे के लक्षण
- हैजे में रोगी को तीव्र दस्त शुरू हो जाते है जो बिलकुल पतले और चावल के मांड की तरह सफ़ेद होते है |
- तीव्र दस्त एवं अधिक दस्त लगने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है एवं शरीर के लिए आवश्यक लवण जैसे – सोडियम , पोटेशियम आदि बाहर निकलने के कारण शरीर में जकड़न हो जाती है, शरीर टूटने लगता है और रोगी का बी.पी. भी कम हो जाता है |
- रोगी को प्यास अधिक लगती है , पेशाब कम लगता है एवं बेहोसी छा जाती है |
- हैजे में रोगी का शरीर ठंडा पड़ने लगता है |
- हैजे के रोगी की नाड़ी और हृदय गति बढ़ जाती है |
- शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिसके कारण रोगी की मृत्यु भी हो जाती है |
- उदरशूल (पेटदर्द)
- अधिक तीव्र स्थिति में रोगी को भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है |
- सिरदर्द एवं दाह की शिकायत भी होती है |
- जलाल्पता (डिहाइड्रेशन / Dehydration)
आयुर्वेद में हैजा को त्रिदोषज व्याधि माना जाता है | इसमें आमदोष (आम विष) की सहज उत्पति के कारण रोगी को बार – बार दस्त एवं उलटी होती है | अत्यधिक उल्टी एवं दस्त के कारण रोगी का शरीरस्थ जल अधीक मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाता है | जिससे रोगी को तीव्र तृष्णा, मूत्राघात, भ्रम, मूर्छा, पानी की कमी, हृदय वेदना आदि अत्यधिक लक्षण भी उत्पन्न होते है | इस समय रोगी की शीघ्र चिकित्सा करनी चाहिए |