आयुर्वेदिक भस्मों के लाभ : भस्मो के रोगोपयोग की संक्षिप्त सूचि

आयुर्वेदिक भस्म

आयुर्वेद में भस्मो से उपचार की विधि प्राचीन और शाश्त्रोक्त है | वर्तमान समय में अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति को टक्कर देने में आयुर्वेद की भस्म परिकल्पना पूर्ण रूप से  कारगर है | भस्मे आयुर्वेद में तुरंत असर करने वाली औषधि है , उचित मात्रा एवं शास्त्रोक्त उपयोग करने पर आयुर्वेदिक भस्मो का अकाट्य लाभ प्राप्त होता है | वस्तुतः भस्म बनाना एक कठिन प्रक्रिया है जिसमे काफी समय और श्रम की आवश्यकता होती है | आज कल इस बाजारीकरन के युग में बहुत से धूर्त लोगो द्वारा गलत तरीके से भस्म का निर्माण करके लोगो से रूपए ऐंठे जाते है अत: भस्म की खरीद और उपयोग से पहले निपुण आयुर्वेदिक  चिकित्सक की राय जरुर ले |

ayurveda bhashm

आयुर्वेद में धातु, खनिज, जड़ी-बूटियों और रत्नों से भस्म बनाई जाती है | भस्मीकरन एक प्रक्रिया होती जिसके द्वारा धातुओ और खानीजो से अवशिष्ट पदार्थो और इनसे होने वाली हानियों से बचाया जाता है | अगर किसी भी धातु को हम सीधा ही ग्रहण करते है तो यह हमारे शरीर के लिए विष का काम करती है लेकिन भस्म बनाने के बाद यही धातु स्वास्थ्य के लिए वरदान साबित होती है |

भस्म बनाने के चरण 

भस्म बनाने की कई प्रक्रियाए है , जिनका निर्धारण धातु की विशिष्टता पर होता है अर्थात किस धातु के लिए कोनसी प्रक्रिया अपनानी है यह उस धातु के स्वाभाव पर निर्भर करता है | भस्म बनाने में निम्नलिखित प्रक्रियाएं करनी पड़ती है |

1. शोधन

शोधन अर्थात शुद्धिकरण करना | धातुओ में मिले हुए अशुद्धियों को निकालने के लिए शोधन प्रक्रिया अपने जाती है | धातुओ में उपस्थित दोषों को दूर करने के लिए उनको गरम कर के दूध , छाछ , क्वाथ , स्वरस या गोमूत्र में बुझाया जाता है जिससे इनमे स्थित दोष निकल जाते है | बुझाने की प्रक्रिया 7 से लेकर 21 बार तक की जाती है |

2. मारण

मारण में धातु को पिस कर चूर्ण रूप में परिवर्तित किया जाता है | मारण के बाद धातु पिसे हुए रूप या अन्य रूप में परिवर्तित हो जाता है जिससे उसकी भोतिक और रासायनिक गुणों में परिवर्तन आ जाता है और वह मानव उपयोग के लिए सार्थक हो जाता है |

3. चालन

धातुओ को गरम करते समय उनको हिलाना पड़ता है जिसे चालन कहते है | चालन के लिए लोहे की रोड़ या किसी औषधीय पौधे की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिससे उसके गुण भी इसमें शामिल हो जाते है | लकड़ी या लोहे की डंडी का निर्धारण भी अलग – अलग धातुओ के अनुसार अलग – अलग किया जाता है |

4.  धावन

धवन का अर्थ है धोना अर्थात इस प्रक्रिया में शोधन और मारण के बाद धातुओं को धोया जाता है जिससे इसमें मिली अन्य अशुधिया भी निकल जाता है |

5. पुतन या पुट देना

भस्मीकरण इस प्रक्रिया में धातुओ का प्रजव्लन किया जाता है | मिटटी के विशिष्ट बर्तन में धातुओ को रख कर उपलों की आग से इनको गरम किया जाता है जिसके कारण इनका रूप परिवर्तित हो कर भस्म रूप में हो जाता है |

इन प्रक्रियाओ के बाद भस्म निर्माण को पूर्ण करने के  लिए इनमे मर्दन , भावना देना , अमृतीकरन और संरक्षण किया जाता है |

कुछ आयुर्वेदिक भस्म और इनके लाभ 

अभ्रक भस्म – खांसी , स्वास , क्षय रोग, पुराना बुखार , पांडू, खून की अशुद्धि , धातु दौर्बल्य . हृदय रोग , फेफड़ो के रोग आदि में 3 से 6 रत्ती दूध या शहद के साथ सेवन से लाभ मिलता है |
मंडूर भस्म – शोथ , कामला, संग्रहणी , जिगर , तिल्ली , मन्दाग्नि आदि
रोगों में उपयोगी |मोती(मुक्ता) भस्म – शारीरक और मानसिक पुष्टि प्रदान करने वाली उतम दावा है | अनिद्रा, स्मृति भंग , घबराहट , तेज धड़कन, अम्लपित, क्षय रोग, जीर्ण ज्वर और हिचकी आदि रोगों में 1 रत्ती शहद के साथ प्रयोग में ले |

शंख भस्म – पेट दर्द , उदर रोग , कोष्ठ शूल और संग्रहणी आदि रोगों में उपयोगी |

स्वर्ण भस्म – यह त्रिदोष नाशक औषध है , इसके सेवन से शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है यह पुराने से पुराने रोग को काटने की क्षमता रखता है | यह जीर्ण ज्वर, काश , स्वास , अनिद्रा , भ्रम, मानसिक कमजोरी , रसायन वाजिकरन और औज्वर्धक है |


अकीक पिष्टी –  वात – पित शामक , सौम्य , बल वर्धक एवं हृदय और मष्तिष्क के लिए लाभ कारी |

अकिक भस्म – हृदय दौर्बल्यता, रक्त पित और नेत्र विकारो में उपयोगी |

गोदंती भस्म – ज्वर, जीर्ण ज्वर, जुकाम, प्रतिस्याय, सर दर्द में उपयोगी | 1 से 4 रत्ती तुलसी स्वरस या शहद के साथ सेवन करे |

टंकण भस्म – कफ नाशक , सर्दी – जुकाम में उपयोगी |

ताम्र भस्म – रक्त विकारो में , पांडू , यकृत , उदर विकारो में , मन्दाग्नि , शोथ, आदि रोगों में उपयोगी | 1/2 से 1 रत्ती शहद के साथ सेवन करे |

मयूर पिच्छ भस्म – स्वास , दमा और एलर्जिक रोगों में कारगर |

रजत भस्म – शारीरिक एवं मानसिक दौर्बल्यता में लाभकारी | धातु दौर्बल्य , नंपुसकता, मधुमेह, बलवर्धक एवं धातु क्षय को रोकने में कारगर | शहद के साथ सुबह – शाम 1 रत्ती की मात्रा में |

लौह भस्म – रक्त शोधक , खून की कमी , कामला , महिलाओं के रक्त प्रदर , पित्त विक्रति और प्रमेह में उपयोगी | 1 रत्ती शहद या माखन के साथ |

स्वर्ण माक्षिक भस्म – कफ – पित्त नाशक , प्रदर, पांडू,  अनिद्रा, मानसिक कमजोरी , नेत्र विकारो एवं मूत्र विकारो में उपयोगी |

त्रिवंग भस्म – धातु दौर्बल्य , खून की कमी और मानसिक कमजोरी में उपयोगी |

नाग भस्म – कफ नाशक , स्वास , कास, प्रतिस्याय , मधुमेह और शारीरिक कमजोरी में लाभकारी |

कसीस भस्म – रक्ताल्पता, तिल्ली और जिगर के बढ़ने रोगों में उपयोगी |

वंग भस्म – स्वप्न दोष, नंपुसकता, धातु दौर्बल्य, श्वास, कास, प्रतिस्याय और प्रमेह रोगों में उपयोगी | मात्रा 1 से 3 रत्ती शहद के साथ सुबह शाम सेवन करे |

धन्यवाद | 

One thought on “आयुर्वेदिक भस्मों के लाभ : भस्मो के रोगोपयोग की संक्षिप्त सूचि

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *