अग्निमंध्य ( Indigestion ) कारण – लक्षण और घरेलु ईलाज |

अग्निमंध्य 

भूख न लगने या जठराग्नि के मंद पड़ जाने को अग्निमंध्य कहते है | इस रोग में अमास्य की पचाने की शक्ति कम हो जाती है | जिससे खाया-पिया भोजन पेट में पड़ा रहता है और वह सही तरीके से पच नहीं पता और भूख नहीं लगती क्यों की पहले का जो भोजन किया था वो अभी भी पेट में ही पड़ा है | अग्निमंध्य में भूख के साथ-साथ पानी पिने की इच्छा भी चली जाती है | इसके प्रभाव से शरीर में विष बनने लगता है एवं शरीर में वात की वर्धि भी हो जाती है कभी-कभी मल – मूत्र तक रुक जाता है |
 
शरीर में वात की वद्धि होने से वायु का गोला पेट में घुमने लगता है और वायु बहार आने की कोशिश करती है लेकिन बाहर आ नहीं पाती जिससे हृदय पर दबाव पड़ता है और हृदय की गति तेज हो जाती है मनुष्य हांफने लगता है उसे अहसास होता है की उसके शरीर में कुछ अटका हुआ है और वह सोचता है की उसे कोई दिल का दौरा पड़ गया लेकिन असल वजह है अधपचा भोजन जो आन्तादियो में पड़ा सड़ने लगता है जिसकी खुस्की और वायु – व्यक्ति को परेशां करने लगती है |

अग्निमांद के कारण 

अग्निमंध्य होने का मुख्य कारण – अधिक और गरिष्ट भोजन करना है | हम जो कुछ भी खाते है वह अमाशय में पहुंचता है , लेकिन क्रोध, भय, चिंता , मल-मूत्र के आवेग को रोकने से, दिन में अधिक देर तक सोने से , रात में अधिक देर तक जागने से , बासी एवं गरिष्ट भोजन करने से , शराब , सिगरेट आदि के अधिक सेवन से भी अग्निमंध्य हो जाता है |
 

अग्निमंध्य के लक्षण 

अग्निमंध्य होने पर पेट भारी हो जाता है | वायु बार-बार ऊपर चढ़ती है इसलिए डकारे आती है | मल मूत्र साफ़ नहीं लगता | बार – बार मल – मूत्र का वेग आता है लेकिन जब जाते है तो सही तरीके से नहीं आता |वायु के आंतो में रुकने से पट दर्द शुरू हो जाता है , पेट फुला हुआ रहता है और शरीर में बैचनी बढ़ जाती है | भूख न लगने से शरीर भी कमजोर हो जाता है और शरीर में विष बनने लगता है |
 

अग्निमांद के उपचार 

अग्निमंध्य में भी हिंग्वाष्टक चूर्ण का बहुत अच्छा उपयोग है | अग्निमंध्य में होने वाली गैस की समस्या को हिंग्वाष्टक चूर्ण जल्द ही ठीक कर देता है | हिंग्वाष्टक चूर्ण के प्रयोग से वायु के कारण होने वाले पेट दर्द से भी छुटकारा मिल जाता है | इसके अलावा कुछ घरेलु नुस्खे निचे दिए गए है जिनको जानकर आप लाभ उठा सकते है |
 

 

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  • चित्रक, अजमोदा, लाल इलाइची, सोंठ, और सैंधा नमक – इन सब को बारीक़ पिस कर चूर्ण बना ले और नित्य सुबह-शाम आधा चम्मच की मात्रा में सेवन करे |
  • सुबह- शाम 2- 2  चित्रकादी वटी का उपयोग करे |
  • छोटी पीपल को पिस कर चूर्ण को पिस कर रोज रात में सोने से पहले 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करे |
  • दो दाने मुन्नका, दो दाने अंजीर और दो छोटी हरद को एक कप पानी में पकाकर खा जावे |
  • अग्निमंध्य मे पुदीने की चटनी भी बहुत उपयोगी होती है क्योकि पुदीना भूख को बढ़ाने वाला होता है | इसलिए अग्निमंध्य में पुदीने की चटनी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए | लेकीन इस चटनी को थोडा औषधीय रूप में बनाए – इसके लिए आपको थोडा सा हरा पुदीना , आधा चम्मच भुना हुआ जीरा , थोड़ी सी हिंग , कालीमिर्च और चुटकी भर सैंधा नमक इन सब को मिला कर चटनी बना ले | इसमें दो चम्मच चटनी को पानी में मिला कर काढ़े की तरह पि जावे | निश्चित ही आपका अग्निमंध्य ठीक हो जावेगा |
  • ग्वारपाठे के रस में थोडा सा नोसादर मिलाकर सेवन करे |
  • प्याज के रस में थोडा सा पुदीने का रस मिला कर सेवन करे |
  • रोज भोजन में दही का उपयोग करे |
  • कच्चे पपीते का आधा चम्मच दूध निकल ले और इस दूध का सेवन मिश्री के साथ करे | पेट के रोगो में यह रामबाण सिद्ध होता है |
  • 5 नीम की पतिया , चार तुलसी की पतिया , 4 कालीमिर्च के दाने और 4 दाने लौंग के – इन सब को पिस कर चटनी बना ले और रोज सुबह भोजन के बाद 4 ग्राम की मात्रा में सेवन करे |
  • लाल इलाइची और लौंग का काढ़ा बना कर इसका सेवन करे |

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