मिर्गी (अपस्मार) / Epilepsy – कारण , लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज

मिर्गी (अपस्मार) / Epilepsy in Hindi

यह रोग ज्यादातर बाल्यावस्था में आरंभ होता है | वयस्कों में इसके मामले कम ही देखने को मिलते है | अगर किसी व्यस्क में पहली बार मिर्गी का दौरा पड़ा होतो यह लक्ष्नात्मक दौरों की श्रेणी में आते है | बिना किसी कारण के बार – बार होने वाले दौरों को मिर्गी रोग कहते है | आयुर्वेद में मिर्गी को अपस्मार और आधुनिक साइंस में इसे Epilepsy Disease कहा जाता है | मिर्गी रोग imgcredit – punjabkesari.in आयुर्वेद में भी इस रोग का वर्णन आज से हजारों साल पहले कर दिया गया था | ऋषि चरक के चरक संहिता में इस रोग का पूर्ण विवरण मिलता है | भारत में आज भी इस रोग को किसी भूत – प्रेत से पीड़ित बीमारी माना जाता है और रोगी व्यक्ति के लिए बहुत से टुने – टोटके आज भी भारत के गाँवों में अपनाये जाते है | जबकि यह रोग किसी भूत – प्रेत से सम्बन्धित न होकर मनुष्य के मष्तिष्क की विकृति का एक रोग है | बहुधा रोगियों को लगातार दौरे पड़ते है जो मष्तिष्क के किसी एक भाग या दोनों भागों के प्रभावित होने के कारण होते है |

मिर्गी रोग के प्रकार / Types of Epilepsy

यह मुख्यत: दो प्रकार का होता है | रोगी व्यक्ति में इसके प्रकार के आधार पर इसके लक्षण भी अलग होते है | इन्हें पूर्ण दौरे या आंशिक दौरे से भी परिभाषित किया जा सकता है |
  1. ग्रांड-माल मिर्गी (Epilepsy)
  2. पेटिट-माल  मिर्गी (Epilepsy)

1. ग्रांड-माल मिर्गी दौरे

इस प्रकार की मिर्गी में दौरे पूर्ण रूप से विकसित होते है अर्थात दौरे लम्बे समय तक चलते है | अधिकतर दौरों की शुरुआत बेहोशी के साथ होती है | अगर रोगी व्यक्ति को अधिक देर तक न संभाला गया तो मृत्यु का कारण भी बन सकते है | विभिन्न व्यक्तियों में इसके भिन्न – भिन्न प्रभावित कारण भी हो सकते है , इसकी चार अवस्थाएँ होती है जो निम्न प्रकार से हैं –
  • चेतावनी (Warning Stage) – किसी विशिष्ट गंध, विशिष्ट संवेदन, चक्कर आने, आँखों के सामने अँधेरा छाने या जी मतलाने जैसी संवेदनाएं होना इसकी प्रारंभिक चेतावनियाँ है |
  • तानात्मक अवस्था (Tonic Stage) – इस प्रकार की अवस्था में अधिकतर रोगी व्यक्ति चिल्लाहट के साथ बेहोश हो जाता है | रोगी की सभी पेशियाँ कड़क जाती है एवं श्वसन क्रिया भी धीमी पड़ जाती है | रोगी व्यक्ति का चेहरा नीला पड़ जाता है एवं दौरे की अकडन के कारण अधिकतर रोगी की जीभ कटी हुई मिलती है |
  • एंठनयुक्त अवस्था (Clonic Stage) – इस अवस्था में रोगी की मांस-पेशियाँ प्रभावित होती है | पेशियों की एंठन के कारण रोगी व्यक्ति के हाथ और पैरों की हलचले बढ़ व उग्र हो जाती है | मुंह में झाग आ जाते एवं मल – मूत्र भी निकल जाता है |
  • मूर्छा की अवस्था (Coma Stage) – शरीर में होने वाली निरंतर एंठनो के कारण रोगी मूर्छित हो जाता है | इस अवस्था में रोगी की मूर्छा (बेहोशी) को तोडा नहीं गया तो रोगी गहरी नींद में चला जाता है | अधिकतर इस तरह के दौरों की अवधि 2 मिनट तक होती है लेकिन कभी कभार यह समय अत्यंत कम भी हो सकता है | गंभीर अवस्था में रोगी को दौरों के बाद और दौरे पड़ते है , एसी अवस्था को “स्टेटस एपिलेप्टिकस” की स्थिति कहा जाता है | इस अवस्था में अगर दौरों को कंट्रोल नहीं किया गया तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है |

2. पेटिट-माल मिर्गी (Epilepsy)

इस प्रकार के दौरे अधिकतर सामान्य होते है | इन दौरों का आकर्मण कम समय के लिए होता है लेकिन दौरे कई बार पड़ सकते है | इसमें बेहोशी बहुत ही कम समय के लिए होती है अर्थात 1 या 2 सेकंड्स तक रहती है | बेहोशी की अवस्था भी इतनी कम होती है की रोगी को सिर्फ घबराहट महसूस होती है एवं देखने वालों को भी इसका पता कम ही चल पाता है | रोगी के शरीर में कोई एंठन नहीं होती , बस रोगी सिर्फ भावहीन हो जाता है | अगर रोगी से दौरे के बारे में पूछा जाता है तो वह सिर्फ एक अंधकारमय (Blackouts) चीज के बारे में ही बता पाता है |

मिर्गी रोग के बाद की अवस्था (Post Epileptic Automatism)

एपिलेप्सी रोग के बाद की अवस्था को Post Epileptic Automatism कहा जाता है | यह अवस्था अधिक खतरनाक भी सिद्ध हो सकती है | इसकी अवधि कुछ घंटो तक हो सकती है | मिर्गी के दौरे के बाद रोगी दिखाई तो सामान्य पड़ता है लेकिन उसकी याददास्त और सोचने – समझने की शक्ति क्षीण हो सकती है | ऐसे में भले ही रोगी कोई कार्य करते हुए सामान्य दिखाई पड़े लेकिन उसे अपने द्वारा किये गए किसी भी कार्य की जानकारी नहीं होती | इसलिए यह अवस्था घातक हो सकती है | रोगी व्यक्ति कोई भी गंभीर घटना को अंजाम दे सकता है और उसे याद भी नहीं रहेगा | एसी अवस्था के लिए “मनोप्रेरक मिर्गी” शब्द का प्रयोग किया जाता है |

मिर्गी रोग के कारण / Causes of Epilepsy

  • अभी तक इस रोग के कोई परिभाषित लक्षण नहीं बताये गए है | लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार मष्तिष्क की विकृति के कारण यह रोग हो जाता है |
  • अनुवांशिकता – अगर माँ – बाप में से कोई भी एक इस रोग से पीड़ित है तो उसकी संतान में मिर्गी रोग होने की सम्भावना अधिक हो जाती है |
  • नशा – अधिक मात्रा में शराब, तम्बाकू या अन्य प्रकार का नशा करने वाले लोगों में भी इस रोग से प्रभावित होने की आशंका होती है |
  • कोई गंभीर मानसिक चोट लगने से भी इस रोग से पीड़ित होने की सम्भावना होती है |
  • उदर कृमि (पेट के कीड़े), पाचन से संभंधित गड़बड़ी, कोई मानसिक रोग , आँखों के रोग, स्त्रियों के मासिक धर्म की समस्या आदि से भी हो सकता है |
  • अधिक मानसिक श्रम करने वाले लोगों को भी होने की सम्भावना होती है |
  • अधिक मैथुन , मानसिक द्वेष , शारीरिक कमजोरी के कारण |
  • मष्तिष्क का कैंसर होने पर भी इस रोग से पीड़ित होएं की सम्भावना पैदा हो जाती है |
  • गन्दी नाले में पैदा की गई सब्जियों का सेवन करने से भी मिर्गी रोग से पीड़ित होने के चांस होते है |
  • सीवरेज मिले पानी का सेवन करने से |
  • दिमागी बुखार एवं ब्रेन स्टोर्क के कारण |

मिर्गी रोग के लक्षण / Symptoms of Epilepsy in Hindi

बहुधा पड़ने वाले दौरों से मिर्गी रोग की पुष्टि की जा सकती है | इसके लक्षण निम्न होते है –
  • अधिकतर दौरा अचानक पड़ता है | दौरे से पहले रोगी को सब – कुछ अंधकारमय दिखाई देता है |
  • शरीर में अकड़न का महसूस होना , चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव और पैरों एवं हाथों में चींटियाँ रेंगने जैसा अहसास |
  • अधिकतर रोगी चक्कर खा कर निचे गिर जाता है |
  • मुंह से झाग , आँखे बाहर एवं रोगी व्यक्ति की जीभ बाहर निकल जाती है |
  • शरीर अर्धचन्द्राकार दिखाई देता है | क्योंकि मांसपेशियों में खिंचाव आने के बाद रोगी का शरीर बिच में से ऊपर उठ जाता है |
  • दौरे का समय अलग – अलग हो सकता है | यह रोगी के रोग की अवस्था पर निर्भर करता है |
  • दौरा कुछ मिनट या सेकंड्स का भी हो सकता है |
  • ग्रांड-माल मिर्गी से पीड़ित रोगी चिल्लाहट के साथ बेहोश होता है |
  • दौरा पड़ने पर व्यक्ति का पूरा शरीर अकड़ जाता है | हाथ – पाँव इधर – उधर मारता है, मुंह से झाग आना, आँखे बाहर निकली हुई, रोगी के दांत आपस में जकड जाते है | ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है एवं रोगी श्वास लेने में कष्ट अनुभव करता है |
  • दौरे के खत्म होते ही रोगी भी सामान्य हो जाता है | रोगी को याददास्त और थकावट की समस्या कुछ समय के लिए रहती है |

मिर्गी का उपचार / Epilepsy Treatments 

मिर्गी साध्य रोग है | उपयुक्त चिकित्सा से एवं केयर से इस रोग से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है | मिर्गी के दौरों में अधिकतर लोग रोगी को परेशान करने के अलावा कुछ नहीं करते | जूते सुंघाने या मुहं में कुछ सामान रखने से दौरे खत्म नहीं होते | सामान्यत: मिर्गी का दौरा 1 या 2 मिनट का होता है , इसके बाद रोगी अपने – आप सामान्य हो जाता है | अत: दौरे के समय संयम बरतना चाहिए | रोगी के कपड़ों को ढीला करना एवं दौरे के कारण होने वाली किसी अन्य दुर्घटना से बचाना ही परिजनों का कार्य हो सकता है | दौरे के बाद रोगी कुछ समय के लिए भ्रामक स्थिति में रहता है , ऐसे समय में परिजनों को रोगी को ढाढस देना चाहिए | रोगी के गले के पास के तंग कपड़ो को ढीला करना, सिर के निचे तकिया लगाना, एंठन होना बंद हो जाए उस समय रोगी को आधी लेटी हुई अवस्था में करवट के बल लेटना – मिर्गी रोग में शुरूआती केयर है | इसके बाद रोगी को किसी अच्छे चिकित्सक से इलाज मुह्य करवाना चाहिए |

मिर्गी रोग का आयुर्वेदिक इलाज 

अपस्मार अर्थात मिर्गी रोग में आयुर्वेद पूर्ण फलदायी चिकित्सा साबित हो सकती है | आयुर्वेद औषधियों के सेवन और नश्य कर्म, बस्ती चिकित्सा एवं पंचकर्म चिकित्सा पद्धति से इस रोग को कंट्रोल किया जा सकता है | यहाँ कुछ घरेलु नुस्खे दिए गए जो मिर्गी रोग में लाभदायक साबित होते है |
  • इसका दौरा खत्म होने के बाद रोगी को एक निम्बू के रस में थोड़ी सी मात्रा में हिंग मिलाकर दिन में तीन या चार बार सेवन करवाना चाहिए |
  • बेहोशी तोड़ने के लिए अंधाधुंध कार्यों की बजाय रोगी के कपड़ो को ढीला करे एवं आराम की अवस्था में लेटायें और मुंह पर ठन्डे पानी के छींटे मारें , साथ ही अगर दौरा नहीं टूट रहा हो तो शरीफे के पतों को पीसकर रोगी के नथुनों में डालें |
  • रोगी के होश में आने के बाद निम्बू के रस में थोडा सा खीरे का ज्यूस मिलाकर सेवन करवाना चाहिए |
  • शहतूत का रस और आंवले का मुरब्बा इस रोग में लाभदायी होते है |
  • तुलसी की 5 पतियों को लेकर इसमें एक ग्राम के बराबर कपूर मिलाकर इसकी चटनी बना ले | बेहोसी की अवस्था में इसे सूंघने से रोगी जल्द होश में आ जाता है |
  • एक गिलास दूध के साथ चार चम्मच मेंहदी के पतों का रस मिलाकर रोगी को सेवन करवाए | मिर्गी रोग में यह रामबाण नुस्खा है |
  • प्याज का दो चम्मच रस निकाल ले इसमें भुने हुए जीरे का चूर्ण मिलाकर सेवन करवाए | रोग में काफी लाभ मिलेगा | प्रयोग को नियमित रूप से किया जा सकता है |
  • नारियल के तेल में आक (आकड़ा) के दूध को मिलाकर रोगी के पैरों , हथेलियों और बांहों पर नियमित मालिश करने से दौरे का समय घटता है |

एक्यूप्रेशर द्वारा मिर्गी रोग का उपचार

एक्यूप्रेशर चिकित्सा द्वारा भी मिर्गी रोग से छुटकारा पाया जा सकता है | मिर्गी रोग में मस्तिष्क, स्नायुसंस्थान , अमाशय और आंतो के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहिए | क्योंकि मिर्गी (Epilepsy) रोग मस्तिष्क, स्नायु संस्थान और पाचन क्रिया की विकृति के कारण भी होता है | एक्यूप्रेशर में निम्न प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव दिया जाता है |

मस्तिष्क के प्रतिबिम्ब केंद्र पर प्रेशर देना

इस रोग में मस्तिष्क के प्रभावी केन्द्रों पर दबाव देना चाहिए | मस्तिष्क के प्रतिबिम्ब केंद्र हाथ एवं पाँव पर होते है | इन पर प्रेशर देने के लिए हाथ की अँगुलियों और अंगूठे से दबा कर प्रेशर देना चाहिए | निचे दिए गए चित्र से आप इसे आसानी से समझ सकते है – मिर्गी रोग का आयुर्वेदिक इलाज मिर्गी का इलाज

गर्दन के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना

गर्दन के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना भी मिर्गी रोग में लाभदायी होता है | क्योंकि गर्दन के प्रतिबिम्ब केन्द्रों का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है | सबसे पहले गर्दन और पीठ के ऊपर की और अर्थात दोनों कंधो के बीच के भाग में प्रेशर देना होता है | इन केन्द्रों पर 10 सेकंड की अवधि में कम से कम 3 बार दबाव देना चाहिए | दबाव की शक्ति रोगी की सहनशीलता पर निर्भर रहनी चाहिए मिर्गी ह्रदय के प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव देना अपस्मार अर्थात मिर्गी रोग में हृदय के पर्तिबिम्ब केन्द्रों पर दबाव देना भी लाभदायक होता है | हृदय के प्रतिबिम्ब केंद्र पर उचित दबाव से 10 सेकंड तक प्रेशर देना चाहिए मूर्छा की अवस्था में मिर्गी रोग में बेहोसी के समय बहुत से जतन किये जाते है की रोगी की बेहोशी टूट जाए | एक्यूप्रेशर में नाक निचे बने प्रतिबिम्ब केंद्र पर दबाव देने से रोगी की मूर्छा टूट जाती है | मिर्गी रोग

मिर्गी (Epilepsy) में ध्यान रखने योग्य बातें

  • अपस्मार रोगी को सैदव पोष्टिक एवं साधारण भोजन देना चाहिए | अधिक मिर्च मसाले और गरम प्रकृति के भोजन से दुरी बनानी चाहिए |
  • गंभीर अवस्था के मरीजों को कभी भी अकेले कंही नहीं भेजना चाहिए |
  • ध्यान दे मिर्गी का इलाज किसी भी पद्धति से करवाए , लेकिन रोग में उचित देख-भाल और परहेजो की अधिक महता है |
  • मिर्गी रोग में योग को अपनाना बेहतर विकल्प है | शीर्षासन , भुजंगासन एवं प्राणायाम आदि का अभ्यास रोगी को मानसिक रूप से मजबूत एवं रोग से मुक्ति दिलाने में कारगर है |
  • मिर्गी के रोगी को मैथुन एवं अधिक शारीरिक श्रम से बचना चाहिए |
  • नशीले पदार्थों का सेवन बिलकुल भी न करे |
  • मानसिक मनोभाव जैसे – काम, क्रोध, लोभ एवं मोह से बचना भी लाभदायक है |
  • मांस, मछली, शराब, तम्बाकू, गांजा , भांग आदि नशीले पदार्थों से दुरी बनाना उचित है |
  • मिर्गी रोग में अपने आहार – विहार में परिवर्तन करके जल्द ठीक हो सकते है |
धन्यवाद |

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