एनीमिया / Anemia क्या है – इसके प्रकार, लक्षण, एवं आयुर्वेदिक उपचार

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एनीमिया  / Anemia in Hindi

साधारण शब्दों में एनीमिया को रक्ताल्पता या पांडू रोग कहा जाता है | एनीमिया वस्तुत: रक्त से जुडी बीमारी है , जिसमे रक्त में उपस्थित हिमोग्लोबिन की मात्रा को दर्शाया जाता है | अगर रक्त में हिमोग्लोबिन की मात्रा कम है तो उसे “एनीमिया” शब्द से परिभाषित किया जाता है | व्यक्ति को एनीमिया की शिकायत कई कारणों से हो सकती है | ये कारण अलग – अलग एनीमिया के प्रकार दर्शाते है | अगर जब कभी आपको रक्ताल्पता की शिकायत हो तो चिकित्सक से उचित परामर्श ले | चिकित्सक इस रोग में सबसे पहले चिकित्सकीय जांच से रक्ताल्पता के प्रकार का निर्धारण करते है |

एनीमिया

एनीमिया के प्रकार / Types of Anemia 

एनीमिया के प्रकार इसके कारणों पर निर्भर करते है | जैसे रक्त की हानि के कारण होने वाले एनीमिया को Haemorrhagic Anemia कहते है | उसी प्रकार इसके अन्य प्रकार है जिन्हें निचे बताया गया है |

एनीमिया के सभी प्रकारों का वर्णन देखें | साथ ही आयुर्वेद के अनुसार एनीमिया क्या है ? एवं इसके क्या इलाज है , सभी का वर्णन इस लेख में किया गया है |

एनीमिया के निम्न प्रकार है –

1. Haemorrhagic Anemia / रक्त की हानि के कारण होने वाला एनीमिया

कभी – कभार शरीर से रक्त की तीव्र हानि (यह किसी चोट या अन्य किसी कारण से हो सकता है ) होती है तो शरीर से लाल रक्ताणु (RBC) और हिमोग्लोबिन भी बाहर निकल जाते है , जिस कारण शरीर में रक्त की कमी के साथ – साथ रक्त में हिमोग्लोबिन की कमी भी हो जाती है | इस प्रकार के एनीमिया को रक्त की कमी के कारण होने वाला एनीमिया कहा जाता है | जब कभी रक्त की हानि 1 पिंट से अधिक होती है तो एनीमिया निश्चित हो जाता है |

एसी स्थिति में व्यक्ति को आघात की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिसका यथाशीघ्र उपचार जरुरी होता है | क्योंकि हिमोग्लोबिन हमारे शरीर में ओक्सिजन की पूर्ति और रक्त को उसका रंग प्रदान करने का कार्य करता है , तो इसकी अनुपस्थिति में शरीर में ओक्सिजन की कमी हो जाती है जो व्यक्ति के मौत का कारण भी बन सकती है |

2. Pernicious (प्राणघातक ) Anemia

इस प्रकार की रक्ताल्पता मुख्यत: शरीर में विटामिन B12 की कमी के कारण होती है | विटामिन B12 शरीर में लाल रक्ताणुओं के निर्माण और उनकी पूर्ण परिपक्वता में सहयोगी होता है , एसे में जब शरीर में इसकी कमी होगी तो निश्चित ही एनीमिया की स्थिति भी पैदा हो जाती है | यह अधिकतर महिलाओं में देखने को मिलता है |

कभी – कभार पेर्निसिअस एनीमिया में कुछ अज्ञात कारणों के कारण अमाशय से स्रावित होने वाले इंट्रन्सिक फैक्टर की अनुपस्थिति हो जाती है , जिसके परिणाम स्वरुप विटामिन B12 शरीर में अवशोषित नहीं हो पाता और एनीमिया का कारण बनता है |

3. आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया / Iron Deficiency Anemia

यह एनीमिया अधिकतर महिलाओं और छोटे बच्चो में अधिक देखने को मिलता है | क्योंकि मासिक धर्म में रक्त की कमी या आहार में आयरन की कमी के कारण एवं आयरन के अवशोषण न होने के कारण भी इस प्रकार का एनीमिया हो जाता है | क्योंकि इस समय अमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की कमी रहती है एवं मासिक धर्म में रक्त की हानि होने व गर्भावस्था काल में पोषण की अधिकता की आवश्यकता इसके कारण बनते है |

इसका उपचार आहार में आयरन युक्त भोजन को बढ़ा कर या आयरन को औषध रूप में ग्रहण करके किया जा सकता है | जब तक शरीर में आयरन की कमी पूरी नहीं हो जाती उस समय तक आहार में पूर्ण आयरन युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए |

4. Aplastic Anemia / Hypoplastic Anemia

अस्थि मज्जा की कमी (Failure and Depression) के कारण अप्लाटिक एनीमिया हो जाता है | साइटोटोक्सिक ड्रग्स, रेडिएशन और वायरल इन्फेक्शन ( HIV, Hepatitis virus, TB) Bone Marrow डिप्रेशन के कारण होते है | इसके अलावा Bone Marrow Depression आनुवंशिक और अज्ञात कारणों से भी हो सकता है |

5. हीमोलाइटिक एनीमिया / Haemolytic Anemia

इस प्रकार का एनीमिया लाल रक्ताणुओं के अत्यधिक नष्ट होने के कारण पैदा होता है | सामान्यत: लाल रक्त कोशिकाओं का जीवन काल 120 दिन होता है , अगर किसी बीमारी कारण या अन्य किसी कारण के कारण जब ये अपने जीवन काल से पहले ही नष्ट होने लगती है तो रक्त में इनकी कमी हो जाती है जो एनीमिया का प्रमुख कारण बनती है |

हीमोलाइटिक एनीमिया के लक्षण ज्यादातर पीलिया से मिलते है अत: इसे हीमोलाइटिक पीलिया भी कहते है | यह कुछ बिमारियों में लाल रक्त कोशिकाओं के अत्यधिक नष्ट होने के कारन होता है | इसमें क्षतिग्रष्ट लाल रक्ताणुओं का हिमोग्लोबिन पीले रंग अर्थात बिलीरुबिन में परिवर्तित हो जाता है एवं रक्त प्रवाह में पीत वर्ण की अधिकता के कारण पीलिया हो जाता है |

6. Megaloblastic Anemia / मेगालोब्लास्टिक एनीमिया

विटामिन B12 और फोलिक एसिड DNA के निर्माण और कोशिका विभाजन (Cell Division) के लिए आवश्यक होते है | अत: विटामिन B12 और फोलिक एसिड की कमी होने के कारण अपरिपक्व लाल रक्त कणिका (Immature RBC) का विभाजन नहीं हो पाता | इससे RBC का आकार सामान्य से बड़ा हो जाता है | RBC का आकार सामान्य से अधिक बड़ा होना ही मेगालोब्लास्टिक एनीमिया कहलाता है | इसको Macrocytic, Hypocromic Anemia भी कहते है |

7. थैलेसीमिया / Thalassemia

यह एनीमिया 16 cromosome पर एक या दोनों जीन की कमी से होता है | यह एक प्रकार का आनुवंसिक रोग है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रान्सफर होता है | थैलासीमिया को cooley’s एनीमिया, Mediterranean anemia के नाम से भी जाना जाता है | यह भी 4 प्रकार का होता है –

  1. Thalassemia minor – 16 वे cromosome पर एक जीन एब्नार्मल होता है |
  2. Thalassemia major – 16 वे cromosome पर दोनों जीन एब्नार्मल होते है |
  3. Alfa Thalassemia    – इसमें अल्फ़ा ग्लोब्युलिन चैन में विकार होता है |
  4. Beta Thalassemia  – इसमें बीटा ग्लोब्युलिन चैन में विकार रहता है | यह सबसे अधिक पाए जाने वाला थैलासीमिया है |

8. Sickle Cell Anemia

इस एनीमिया में Hb में पायी जाने वाले Beta globin chain की 6th पोजीशन पर glutamic एसिड के स्थान पर valine अमिन एसिड प्रतिस्थापित हो जाता है जिसके कारण RBC में पाया जाने वाला hemoglobin असामान्य हो जाता है व ओक्सिजन की कमी में RBC एक हंसिये के आकार की हो जाने से आसानी से ruputre हो जाती है | इस एनीमिया से ग्रषित व्यक्ति अपने शुरूआती बचपन में falciparum मलेरिया से ग्रषित होने के प्रतिरोधी गुणों से युक्त हो जाता है अर्थात उसे falcirum malaria नहीं होता है |

एनीमिया के लक्षण और सामान्य प्रभाव / Anemia Symptoms and General Effects on Body

एनीमिया के अधिकांश लक्षण ऑक्सीजन की पूर्ति में कमी के कारण होते है , जो लाल रक्त कोशिकाओं एवं हिमोग्लोबिन की कमी से होती है | मनुष्य के शरीर पर इसके निम्न लक्षण प्रकट होते है |

  • त्वचा और श्लेष्मिक झिल्ली का सफेद्पन – यह लक्षण विशेषत: आँख की निचली पलक की श्लेष्मिक झिल्ली और ओठों पर अधिक देखने को मिल जाता है |
  • एनीमिया होने पर शरीर में कमजोरी, चक्कर आना और बेहोशी होना जैसे लक्षण प्रकट होने लगते है |
  • टैकीकार्डिया – इसका अर्थ है हृदय की धड़कन का बढ़ जाना | शरीर में हिमोग्लोबिन की कमी होने पर शरीर ओक्सिजन की पूर्ति एवं इसे संतुलित करने के लिए हृदय की गति सामान्य से अधिक हो जाती है |
  • श्वास लेने में कठिनाई भी एनीमिया का एक लक्षण है | क्योंकि शरीर में ओक्सिजन की कमी होने पर शरीर इसकी पूर्ति करने की कोशिश  करता है जिससे हृदय की धड़कन बढ़ जाती है और कभी – कभी हृदयघात की सम्भावना भी रहती है | हृदयघात का शुरूआती लक्षण श्वास कष्टता ही होता है | अधिक परिश्रम करने पर रोगी को तीव्रता से श्वास कष्टता का अहसास होता है |
  • हाथ एवं पैर ठन्डे रहने लगते है | ये सभी लक्षण शुरुआती एनीमिया में थोड़े दिखाई दे सकते है लेकिन जब रोग गंभीर हो जाता है तो रोग के लक्षण भी आसानी से देखे जा सकते है एवं लक्षण तीव्रता से बढ़ते है |

अभी तक आपने आधुनिक मतानुसार एनीमिया की जानकारी को पढ़ा , अब हम आपको आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार एनीमिया क्या है , इसके प्रकार और इलाज के बारे में बताएँगे |

आयुर्वेद मतानुसार एनीमिया (पांडू रोग) क्या है ?

आयुर्वेद में एनीमिया रोग का ज्ञान आज से हजारों साल पहले भी था | आयुर्वेद में एनीमिया को पांडू रोग कहा जाता है | पांडू रोग से तात्पर्य है की शरीर में रस धातु के विशिष्ट घटक का क्षय होना या इसकी कमी होना | हमारे शरीर में रस धातु का कार्य शरीर का संवर्धन एवं तर्पित करना होता है एवं साथ रक्त को पुष्टित करने का कार्य भी रस धातु का ही होता है |

जब कभी व्यक्ति के शरीर में वातादी दोषों का संचय होता है तो इससे रस एवं रक्त धातु प्रदूषित हो जाती है | रस एवं रक्त धातु का प्रदुषण रक्ताल्पता का कारण बनता है | रक्ताल्पता होने पर त्वचा का रंग पांडू वर्ण का हो जाता है | इसे ही आयुर्वेद में पांडू रोग कहा जाता है | यह आधुनिक एनीमिया रोग से बिलकुल मिलता जुलता है | आयुर्वेद अनुसार रस क्षय (कमी या नष्ट) एवं रक्त क्षय दोनों के कारण या किसी एक कारण से भी पांडू रोग हो सकता है | इसे किसी सीमा में परिसीमित नहीं किया जा सकता |

आयुर्वेद मतानुसार पांडू रोग (Anemia) के कारण 

  • अधिक मात्रा में क्षार या अम्लीय पदार्थो का सेवन करने से एनीमिया (पांडू रोग) हो सकता है |
  • नशीले पदार्थो – जैसे शराब का सेवन अधिक करने से भी पांडू रोग होने की सम्भावना रहती है |
  • मिट्टी का सेवन करने वाले बच्चों में भी एनीमिया (पांडू रोग) हो जाता है |
  • अतिउष्ण एवं असात्मय आहार का सेवन भी कारण बनता है |
  • विरुद्ध आहार का सेवन करना |
  • अपथ्य भोजन का सेवन करने से |
  • दिवास्वप्न (दिन में सोना) |
  • अधिक मैथुन करने से रस धातु का क्षय होकर पांडू रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है |
  • अधिक व्यायाम करना |
  • अधारणीय वेगों जैसे – मल – मुत्रादी को धारण करने से |
  • नित्य कर्मों में अनियमितता |
  • मानसिक विकार जैसे – अधिक चिंता करना , भय, क्रोध, शोक आदि के कारण |

इन सभी कारणों से हृदय प्रदेश में रहने वाला साधक पित्त बढ़ जाता है | बढ़ा हुआ पित्त बलवान वायु के द्वारा पुरे शरीर में संहावित किया जाता है | यही पित्त रस, रक्त , त्वचा एवं मास को प्रदूषित करके पांडू रोग का हेतु बनता है |

आयुर्वेद मतानुसार पांडू रोग (Anemia) के प्रकार 

आयुर्वेद के महान आचार्य चरक ने एनीमिया को 5 प्रकार का बताया है –

  1. वातजपांडू
  2. पितजपांडू
  3. कफजपांडू
  4. सन्निपातज पांडू
  5. कृमिपांडू या मृदिकाभक्षण जन्य पांडू

पांडू रोग (Anemia) के लक्षण आयुर्वेदानुसार 

1. वातजपांडू के लक्षण 

इस प्रकार के पांडू रोग में त्वचा, आँखों , मूत्र का रंग रुक्ष एवं कृष्ण वर्ण का हो जाता है | शरीर में तोद, कंप , आनाह, भ्रम आदि वातज लक्षणों की उपस्थिति हो जाती है |

2. पित्तजपांडू के लक्षण 

पित्तजपांडू रोग में मल , मूत्र, त्वचा और आँखों का रंग पीले रंग का हो जाता है | शरीर में सभी पित्तज लक्षण जैसे – शरीर में दाह (जलन), तृष्णा , ज्वर, अतिसार एवं अम्लपित्त के लक्षण प्रकट हो जाते है | इसे हम आधुनिक के Haemolytic एनीमिया के समतुल्य मान सकते है |

3. कफजपांडू रोग के लक्षण 

इसमें सभी लक्षण कफज प्रकृति से प्रभावित हो जाते है | जैसे शरीर में कफप्रशेक, तन्द्रा, आलस्य, अतिगौरव का अहसास होना | साथ ही मल, मूत्र, नेत्र एवं मुख में श्वेताभ रंग का होना एवं शोथ होना प्रमुख लक्षण है |

4. सन्निपातजपांडू रोग के लक्षण 

इस प्रकार के पांडू रोग (anemia) में सभी तीनो दोषों एक सम्मिलित लक्षण दिखाई देते है | जैसे ज्वर, अरोचक, छ्र्दी,तृष्णा, अंगो का कृष्ण एवं पित्त वर्ण आदि ये इसके लक्षण है | आयुर्वेद में इस प्रकार के पांडू रोग को असाध्य माना है | आधुनिक Aplastic anemia से मिलता – जुलता एनीमिया है | क्योंकि इसमें भी पाचन के रक्त विकार की प्रमुखता रहती है |

5. मृतिकाभक्षण जन्य पांडूरोग के लक्षण 

इसे कृमिजन्य पांडू रोग भी कहा जा सकता है | इसमें मिटटी का सेवन करने से पांडू रोग उत्पन्न हो जाता है | मिटटी के अलग – अलग गुणों जैसे कषाय रस मिट्टी से वातप्रकोप, ऊषर मिट्टी से पित्तप्रकोप एवं मधुर रस मिट्टी से कफ प्रकुपित होकर इन्द्रियों की शक्ति का नाश एवं साथ ही ओज का क्षय, रस – रक्त धातुओं में विकार उत्पन्न करदेते है जिससे मृतिकाभक्षण जन्य पांडू रोग हो जाता है | मिटटी के सेवन से कृमियों की उत्पत्ति शरीर में हो जाती है जो शरीर में उपस्थित रस एवं रक्त धातुओं के साथ – साथ अन्य विकार भी उत्पन्न करते है |

एनीमिया का आयुर्वेदिक इलाज एवं उपचार 

एनीमिया रोग का उपचार करने से पहले यह निश्चित करना जरुरी होता है की आपको किस प्रकार का एनीमिया है | अगर शरीर में खून की कमी को पूरा करना चाहते है तो इन घरेलु प्रयोगों का इस्तेमाल कर सकते है | क्योंकि विभिन्न प्रकार का एनीमिया अपने लक्षणों से ही निर्धारित होता है एवं इनके हेतु भी अलग – अलग होते है , अत: इनका उपचार भी इनके हेतुओं के आधार पर निर्भर करता है | आयुर्वेद में एनीमिया की कमी में बहुत सी औषध व्यवस्था काम करती है लेकिन ये भी पांडू रोग किस प्रकार का है इस पर निर्भर करती है |

जैसे अगर आपको साधारण आयरन की कमी से पांडू रोग से पीड़ित होना पड़ा है तो आयुर्वेदिक चिकित्सक विभिन्न औषधियों जैसे – नवायसलौह , शंख भस्म, त्रिफला चूर्ण आदि का संयुक्त रूप से किसी निश्चित मात्रा में निर्धारण करते है | साधारण एनीमिया में लोहासव एवं कुमार्यासव आदि आसवों का प्रयोग भी करवाया जाता है |

इसी प्रकार अन्य पांडू रोग जैसे कृमिजन्य पांडू रोग में विडंगदिलौह, कृमिमुद्ग्र्रस या विद्न्गासव एवं लोहासव के इस्तेमाल का प्रयोग बताया जा सकता है |

आधुनिक चिकित्सा में भी एनीमिया का इलाज एनीमिया के प्रकार पर निर्भर करता है | अगर जैसे आयरन की कमी से होने वाले साधारण एनीमिया में भोजन में आयरन युक्त आहार को बढ़ा कर या सीधा ही आयरन की दवाइयों का सेवन करवाकर इस प्रकार के एनीमिया को ठीक किया जाता है | लेकिन कुछ जटिल एनीमिया जैसे aplastic anemia में उपचार की जटिलताएँ भी रोग पर निर्भर करती है |

एनीमिया के कुछ घरेलु उपचार / इलाज 

  • पालक – पालक में भरपूर आयरन होता है | इसलिए इसके नियमित इस्तेमाल से शरीर में हुई आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया से छुटकारा मिलता है | साथ ही पालक में बहुत से अन्य पोषक तत्व जैसे विटामिन, कैल्शियम एवं फाइबर होते है जो शरीर की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर देते है |
  • चुकंदर – चुकंदर भी खून की कमी पूरी करने में सबसे विश्वनीय सब्जी है | चुकंदर का ज्यूस निकाल कर या सब्जी के रूप में निरंतर सेवन करने से शरीर में हुई खून की कमी की भरपाई कुछ ही सप्ताह में हो जाती है |
  • शहद – शहद का सेवन भी एनीमिया में काफी लाभदायी होता है |
  • अनार – अनार में आयरन, प्रोटीन और कार्बोह्य्द्रेड की उचित मात्रा उपस्थित होती है | अत: इसका सेवन करना भी anemia रोग में फायदेमंद होता है |
  • टमाटर – टमाटर भी आयरन की कमी को पूरा करता है | अत: हिमोग्लोबिन की कमी होने पर टमाटर का सेवन करना लाभदायी होता है |
  • खजूर – एनीमिया में खजूर का इस्तेमाल किया जा सकता है |
  • अधिक से अधिक हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए – जैसे – बथुआ, पालक आदि |
  • इनके अलावा आहार में गुड, धनिया, लहसुन , निम्बू आदि का प्रयोग करना लाभ देता है |

धन्यवाद |

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