भस्त्रिका प्राणायाम – करने की विधि , लाभ और सावधानियां

भस्त्रिका प्राणायाम / Bhastrika Pranayam in Hindi

इस भस्त्रिका का अर्थ होता है “धौंकनी” | जिस प्रकार लुहार की धौंकनी निरंतर तीव्र गति से हवा फेंकती रहती है और लोहा गरम होता रहता है उसी प्रकार से भस्त्रिका प्राणायाम में श्वास – प्रश्वास की गति तीव्र बलशाली और सशक्त रखनी पड़ती है | इस प्राणायाम को करते समय एक प्रकार की ध्वनि निकलती है जिसकी तुलना हम लोहार की धौंकनी से कर सकते है |

भस्त्रिका लाहकाराणां यथाक्रमेण सम्भ्रमेत्।
तथा वायुं च नासाभ्यामुभाभ्यां चालयेच्छनै:।।
एवं विंशतिवारं च कृत्वा कुर्याच्च कुम्भकम्।
तदन्ते चालयेद्वायुं पूर्वोक्तं च यथाविधि।।
त्रिवारं साधयेदेनं भस्त्रिकाकुम्भकं सुधी:।
न च रोगो न च क्लेश आरोग्यं च दिने दिने।।

भस्त्रिका प्राणायाम

अर्थ – जैसे लोहार धोंकनी द्वारा वायु भरता है उसी प्रकार नासिका द्वारा वायु को उदर में भर शनै: शनै: पेट में चलायें | इस तरह बीस बार करके कुम्भक द्वारा वायु धारण करे फिर लोहार की धोंकनी से जैसे वायु निकलती है , वैसे ही नासिका द्वार से वायु निकालें यह भस्त्रिका कुम्भक कहलाता है | इस प्रकार यह क्रिया तीन बार पुरे नियम से करे | इस प्रकार से यह प्राणायाम करने से किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते और व्यक्ति सभी रोगों से हमेशां के लिए आरोग्य प्राप्त कर लेता है |

कैसे करे भस्त्रिका प्राणायाम ? इसकी विधि

भस्त्रिका प्राणायाम को आप दो प्रकार से कर सकते है |

प्रथम विधि 

  • सबसे पहले पद्मासन में बैठ जाएँ |
  • अपनी गर्दन , मेरुदंड और पीठ को बिलकुल सीधा रखे |
  • अब अपने दाहिने नासिका द्वार को बंद कर के बांये नाक से तेज गति से श्वास को अन्दर ले और उसी गति से श्वास को बाहर फेंके |
  • ध्यान दे श्वास इतनी गति से ले की नाक से श-श की आवाज आये | श्वास छोड़ते समय भी इतनी आवाज हो |
  • अब दोबारा यही क्रिया बांयी नासिका द्वार को बंद करके दांये नासिका से करे |
  • इसी क्रम में लगभग 15-20 बार करे |
  • श्वास लेते समय पेट का फूलना और पिचकाना समान तरीके से करे |
  • इस प्रकार यह एक चक्र कहलायेगा |
  • कम से कम तीन चक्र पुरे करे |
  • इन सब के बाद मुलबंध और जालन्धर बंध का प्रयोग करे |

दूसरी विधि 

  • इस विधि में भी सबसे पहले साफ़ और समतल जगह पर चटाई बिछा कर सुखासन या पद्मासन में बैठ जाए |
  • अब अपने दोनों नासिका द्वार से आवाज करते हुए श्वास – प्रश्वास की क्रिया करनी है |
  • इस विधि में भी श्वास लेते समय पेट फुलाना और श्वास छोड़ते समय पेट को पिचकाना होता है | कहने का अर्थ है की तीव्रता से श्वास अन्दर लेने से पेट स्वाभाविक ही फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट स्वाभाविक ही पिचकेगा |
  • इस प्रकार यह क्रिया कम से कम 20 बार करनी है |
  • सामर्थ्य अनुसार अंत: कुम्भक करे | अर्थात श्वास को अंदर रोके रखे |
  • इसके बाद में जालन्धर बंध और मुलबंध का अभ्यास करे |
  • यह एक चक्र कहलायेगा | इस प्रकार तीन चक्र पूर्ण करे |

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ / फायदे

  • अस्थमा या दमा के रोगी इस प्राणायाम का अभ्यास करने से अस्थमा से छुटकारा पा सकते है | श्वास , अस्थमा आदि रोगों में भस्त्रिका प्राणायाम का लगातार अभ्यास करने से जल्द ही इससे छुटकारा मिल सकता है |
  • शरीर में स्थित विजातीय तत्वों का निष्कासन होता है , जिससे रक्त शुद्ध होता है एवं रक्त संचार भी सुचारू होता है |
  • लगातार अभ्यास से फेफड़े मजबूत होते है जिससे कभी दमा की शिकायत नहीं होती |
  • शरीर में स्थित दूषित कफ को बाहर निकलता है |
  • इस प्राणायाम को करते रहने से त्रिदोष – वात, पित और कफ का शमन होता है और व्यक्ति निरोगी रहता है |
  • पाचन सम्बन्धी अंगो की क्रियाशीलता बढती है जिससे पाचन रोगों में भी लाभ होता है |
  • पेट की चर्बी को भी इस प्राणायाम के प्रयोग से कम किया जा सकता है |
  • भस्त्रिका प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से व्यक्ति तनावमुक्त रहता है | साधक स्वस्थ तन और मन से परिपूर्ण होता है |
  • कुंडलिनी जागरण में भी यह प्राणायाम लाभदायक होता है |

भस्त्रिका प्राणायाम की सावधानियां

  • हाई ब्लड प्रेस्सर और हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति इस प्राणायम को तीव्र गति से न करे |
  • फेफड़ो की तीव्र कमजोरी वाले योग्य योग गुरु की राय लेकर अपनाये |
  • अल्सर, हर्निया और गर्भवती महिलाए इसे न करे |
  • अधिक थकान और कमजोरी महसूस होने पर कुछ देर के लिए रोक दे |
  • नए साधक अपने सामर्थ्य अनुसार करे |
  • भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले हमेशां अपनी नाक को अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिए |
  • गर्मियों के मौसम में इस प्राणायम के बाद शीतली प्राणायम को अपनाना चाहिए |
  • श्वास गति को नियमित करने के लिए अनुलोम-विलोम को अपना सकते है |

धन्यवाद |

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