विटामिन डी – कमी से रोग, स्रोत और महत्व

विटामिन डी

विटामिन डी वसा में घुलनशील दूसरा महत्वपूर्ण विटामिन है। विटामिन मुख्यतया दो प्रकार का होता है – विटामिन डी2 और विटामिन डी3 । विटामिन डी2 को प्रोविटामिन और विटामिन डी3 को डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल भी कहते है। विटामिन डी का मुख्य स्रोत सूर्य की किरणें होती हैं। इसके अलावा यह कुछ मात्रा में प्राणिज आदि भोज्य पदार्थों में भी पाया जाता है लेकिन वनस्पतिज खाद्य पदार्थों में यह बिल्कुल भी नहीं मिलता।

विटामिन डी
विटामिन डी

इस विटामिन की खोज सन् 1922 में मेक्कोलम और उनके साथियों ने की थी। सबसे पहले मेलेन्बी ने सन् 1919 में यह खोज किया कि रिकेट्स से पीड़ित कुतों को जब काॅड मछली के यकृत का तेल दिया गया तो वे इस रोग से मुक्त हो गये । फिर स्न 1922 में मेक्कोलम और साथियों ने काॅड के लिवर के तेल से विटामिन ’ए’ को प्रथक किया तब जाकर विटामिन डी को प्राप्त कर सके। इसलिए मेक्कोलम और उनके साथियों ने ही विटामिन डी की खोज की।

विटामिन ‘डी’ के प्रकार

विटामिन डी दो प्रकार का होता है।

1. विटामिन डी2 – यह पेड़ पौधों में पाया जाता है। इसे अर्गोस्टीराॅल या प्रोविटामिन भी कहते है। अर्गोस्टीराॅल पर जब सूर्य की पैराबैंगनी किरणें पड़ती हैं तो किरणों की क्रिया से कैल्सीफराॅल बनता है, यह फफूँदि और खमीर में सबसे अधिक होता है।

2. विटामिन डी3 – विटामिन डी3 को डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल भी कहतें हैं। यह मछलीयों के तेलों में पाया जाता है। मनुष्य की त्वचा के नीचे 7-डीहाइड्रोकोलेस्ट्रोल उपस्थित रहता है जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों के सम्पर्क में आकर विटामिन डी के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

विटामिन डी के स्रोत

मनुष्य को चाहने वाला विटामिन डी ज्यादातर सूर्य की किरणों से ही प्राप्त होता है। इसके अलावा कुछ मात्रा में प्राणिज भोज्य पदार्थों से भी प्राप्त होता है। वनस्पतिज भोज्य पदार्थों में यह नही पाया जाता। मछलियों के तेल में मुख्य रूप से विटामिन D पाया जाता हैं। इसके अलावा हैलिबेट यकृत का तेल , काॅड यकृत का तेल, शार्क के यकृत का तेल, वसायुक्त मछलीयां आदि में यह पाया जाता है। मध्यम प्राप्ति स्रोत में सम्पूर्ण अंडा, अंडे की जर्दी, घी व मक्खन, पाउडर वाला दूध एवं ताजे दूध में भी यह कुछ मात्रा में पाया जाता है।

लेकिन फिर भी सूर्य की किरणें ही इसका मुख्य स्रोत हैं इसलिए नियमित रूप से प्रत्येक दिन कम से कम 15 मिनट तक सूर्य की किरणों के सामने खड़ा होना चाहिए।

विटामिन डी की कमी से होने वाली बिमारियां

शारीरिक विकास और वृद्धि के लिए विटामिन डी की हमारे शरीर को अत्यंत आवश्यकता होती है और यह प्रकृति ने हमें मुफ्त में प्रदान की है। लेकिन फिर भी हमारी जीवन शैली और व्यस्तता के कारण हम इसे कम ही उपयोगिता देतें है। जब हमारे शरीर में विटामिन डी की कमी हाती है तो रक्त में उपस्थित एल्केलाइन फास्फेट की मात्रा बढ़ जाती है। विटामिन डी की कमी से शरीर में कैल्सियम और फास्फोरस का अवशोषण ठीक ढंग से नहीं हो पाता। अतः हड्डियां एवं दाँत कमजोर होते जाते हैं और जरा सी चोट पर ही वे टुट जाती है।

विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण निम्न बिमारियाँ हो जाती हैं।

1. रिकेट्स – यह रोग ज्यादातर छोटे शिशुओं को होता है जो 6 माह से 18 माह तक के होते हैं। विशेषकर उन्हे जिनके घर का वातावरण प्रदूषित होता है और वहां ताजी हवा एवं सूर्य की रोशनी बिल्कुल नहीं पहूंचती। यह रोग हो जाने के बाद बच्चों की खोपड़ी का अग्र भाग देरी से भरता है और उनकी अस्थियां भी कोमल हो जाती है। फलस्वरूप रीढ़ की हड्ढि, ललाट की अस्थि का आकार बिगड़ जाता है।

2. टिटैनी/मांसपेशियों मरोड़ (Tetany) – विटामिन डी की कमी से कैल्सियम और फास्फोरस की क्रियाशिलता भी गड़बड़ा जाती है जिस कारण से इनके चयापचय में असमानताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। तब टिटैनी रोग हो जाता है। इस रोग में हाथ-पैरों के जोड़ो में तीव्र दर्द एवं पीड़ादायक ऐंठन होने लगती है, जिस कारण से व्यक्ति बेहोस होने लगता है।

3. दाँतो का सड़ना (Dental Decay) – विटामिन D की कमी से दाँतों का सड़ना शुरू हो जाता हैं। जब विटामिन ‘डी’ की कमी होती है तो बच्चों में दाँत समय से नहीं आते । उनके दाँत विकृत एवं छोटे रह जाते हैं और वे पूर्ण रूप से अस्वस्थ रह जाते हैं। इसकी कमी से कैल्सियम फास्फेट का चयापचय ठीक ढंग से नहीं होता । दरःशल दाँतो के ऐनामेल और डेन्टिन भाग में कैल्सियम फास्फेट का जमाव होता है तभी जाकर दाँत मजबूत बनते हैं लेकिन जब कैल्सियम फास्फेट का चयापचय ठीक ढंग से नही होता तो यह जमाव भी नहीं हो पाता और दाँत विकृत होकर सड़ने लगते हैं।

4. आॅस्टियोमेलशिया/अस्थि मृदूलता (Osteomalacia) – यह रोग बड़ो में होता है जिसे वयस्कों का रिकेट्स कहा जाता हैं। यह रोग विशेषकर गर्भिणी स्त्रीयों या प्रसूताओं को होता है। जो गर्भवती महीलाएं सूर्य किरणें और अपने आहार में दूध, फल, हरी पतेदार सब्जियां आदि का सेवन नहीं करती उनको होने की प्रबल सम्भावनाएँ होती हैं। इस रोग से पीड़ित महीलाओं की अस्थियां बिल्कुल कमजोर हो जाती हैं। जरा सी चोट से ही वे टुट जाती हैं। कमर और जांघों में दर्द रहने लगता है। गर्भपात होने की भी सम्भावना रहती है।

5 आॅस्टोपोरोसिस (Osteoporosis)- यह रोग वृद्धों को होता है। इसका भी कारण विटामिन ‘डी’ और कैल्सियम की कमी होता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों की अस्थियां निःशक्त, कमजोर एवं बराइटल हो जाती हैं जो शरीर का वजन भी नही सहन कर सकती और मामुली सी चोट और झटके से टूट जाती हैं।

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