अग्निजार / Ambergris – अग्निजार का सामान्य परिचय एवं उपयोग

अम्बर / अग्निजार / Ambergris

परिचय
                               समुद्रेणाग्निनक्रस्य जरायुर् बहिरुज्झितः ।
                               संशुष्को भानुतापेन सोऽग्निजार इति स्मृतः ।। रस-३.१४२ ।।
अग्निजार  मुख्यतया हिंदमहासागर , श्रीलंका , निकोबार द्वीप, लक्षद्वीप, जिंजीबार और अफ्रीका के समुद्री तटों पर पाया जाता है | यह एक प्रकार का जान्तव द्रव्य  है जिसे आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में उपयोग किया जाता है | अम्बर या अग्निजार एक प्रकार की समुद्री  मत्स्य जाती स्पर्म व्हेल की एक ग्रंथि है जो इसके मरने के बाद प्राप्त होती है | स्पर्म व्हेल के द्वारा समुद्र में उपस्थित एक विशेष प्रकार की वनस्पति का भक्षण कर लिया जाता है तब यह वनस्पति स्पर्म व्हेल के आंत्र में एक विकार उत्पन्न करती है जो एक ग्रंथि का रूप ले लेती है | इस ग्रंथि से ही स्पर्म व्हेल की मृत्यु हो जाती है एवं जब स्पर्म व्हेल का शरीर पूरी तरह से सड़कर गल जाता  तब यह ग्रंथि पानी में तरति हुई , समुद्र के किनारों तक पंहुचती है | जिसे बाद में मछुआरों  द्वारा इक्कठा कर लिया जाता है | यही अग्निजार कहलाता है |
अग्निजार के फायदे
अग्निजार / Ambergris

 

 नए अम्बर में एक बहुत ही तीव्र गंद आती है जो असहनीय है लेकिन जब लम्बे समय तक इसे धुप में सुखाया जाता है तो यह अपनी गंद बदल लेती है | बाद में इससे एक अलग प्रकार की सुगंध आती है जो इसे इत्र आदि के लिए उपयोगी बनाती है |

अग्निजार के गुण – धर्म एवं रोग्प्रभाव 

इसका रस कटु होता है यह गुणों में लघु और स्निग्ध होती है | यह उष्ण  वीर्य का उष्ण होता है एवं पचने पर इसका विपाक कटु होता है | इन्ही गुणों के कारण यह कफनाशक , वात शामक , दीपन, पाचन, मष्तिष्क नाडी दोर्बल्या शामक , उन्माद हर, बजिकारक आदि में फायदेमंद है |

अग्निजार के विशिष्ट योग 

अम्ब्रादीवटी , वृहतब्राह्मी वटी एवं यूनानी दवाई – खमीरा गाव्ज्वा उमरी में प्रयोग की जाती है  |

अग्निजार के सेवन की मात्रा 

125 mg से 375 mg  तक प्रयोग की जा सकती है  |

अग्निजार के औषध उपयोग एवं सावधानियां 

अग्निजार को यौन कमजोरी , उन्माद , हृदय दुर्बलता , पक्षाघात , कफज विकार, शूल  और उदर रोगों में उपयोग की जा सकती है |
यौन शक्ति के  लिए इसे मोती भस्म , और शहद के साथ मिलाकर सेवन किया जा सकता है |
कफज विकारो में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है |
पागलपन में अग्निजार को ब्राह्मी के साथ लेने से लाभ मिलता है |
यह  पित्तवृद्धक द्रव्य है इसलिए जिस व्यक्ति की प्रकृति पित्त है उनको इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए |
जिनको आंतो में शिकायत हो वे इसका इस्तेमाल बिल्कुल भी न करे | क्योकि आंतो में यह अपना विपरीत असर डालती है |
धन्यवाद |

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