गेंहू के जवारे : कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को ठीक करने वाला देशी पेय

गेंहू के बिज को जब मिटटी में बोया जाता है तो कुछ दिनों में जो छोटी – छोटी घास निकलती है वही गेंहू के ज्वारे कहलाते है अर्थात गेंहू के अंकुरित बिज ही जवारे है | गेंहू के जवारे को “हरा रक्त” भी कहते है क्यों की मानव रक्त की तरह इसका P.H. फैक्टर भी 7.4 है , इसलिए यह जल्दी खून में अवशोषित होता है और पीलिया और रक्ताल्पता (Anemia) के रोगी के लिए अमृत तुल्य सिद्ध होता है | भारत में प्राचीन समय से ही गेंहू के ज्वारो का प्रयोग औषधि रूप में होते आया है | भारत के कई त्योंहार जैसे – गणगोर, शीतलाष्टमी आदि पर गेंहू के जवारे उगने का प्रचलन है एवं पुराने भारतीय चिकित्सक भी गेंहू के जवारे से बहुत से लोगो का उपचार करते थे |

पश्चिमी देशो में गेंहू के जवारे से उपचार की पद्धति की शुरुआत डॉ. एन. विग्नोर ने की थी | बचपन में उनकी दादी प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गयल सैनिको का उपचार जड़ी-बूटियों और गास के रस से करती थी | तभी से उनके मन में जड़ी – बूटियों और विभिन्न घासों से रोग का उपचार करने की इच्छा हुई और उन्होंने अनुसन्धान शुरू किये | 50 वर्ष की उम्र में डॉ. एन. विग्नोर को आंत में कैंसर हो गया तब उन्होंने गेंहू के जवारे के रस का नियमित 1 वर्ष तक सेवन किया और खुसी की बात ये थी की 1 वर्ष में उनका कैंसर ठीक हो गया था | तब से लेकर मृत्यु तक उन्होंने गास के रस से रोगियों का इलाज किया और इसमें वे सफल भी रही |
दरह्शल गेंहू  के जवारे में क्लोरोफिल श्रेष्ठ मात्र में होता है | इसमें सभी प्रकार के विटामिन्स जैसे – ए, बी1, 2, 3, 5, 6, 8, 12 और 17 (लेट्रियल); सी, ई तथा के। इसमें केल्शियम, मेग्नीशियम, आयोडीन, सेलेनियम, लौह, जिंक और अन्य कई खनिज होते हैं। विटामिन बी 17 कैंसर को खत्म करने में कारगर होता है |

जाने कैसे खत्म करता है कैंसर को 

गेंहू के जवारे में भरपूर क्लोरोफिल होता है जो शरीर में ऑक्सीजन की भरपूर पूर्ति करता है | क्लोरोफिल शरीर में हिम्मोग्लोबिन का निर्माण करता है इससे कैंसर की कोशिकाओ को ज्यादा ऑक्सीजन मिलता है और ज्यदा ऑक्सीजन के कारन कैंसर कोशिकाओ का दम घुटने लगता है | गेंहू के ज्वारो में में विटामिन बी 17 अर्थात लेट्रियल और सेलेनियम दोनों होते है | ये दोनों ही शक्तिशाली कैंसर रोधी तत्व होते है जो शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते है | गेंहू के जवारे भी खून की तरह हलके क्षारीय होते है और कैंसर अम्लीय माद्यम में ही अधिक फैलता है |

सन 1938 में महान डॉ. पोल गेर्हार्ड सीजर ने अपने अनुसन्धान से बताया था की जब कोशिकाओ में उचित मात्रा में ऑक्सीजन न जा पाए और सामान्य स्वसन क्रिया बाधित हो तभी कैंसर का रोग पनपता है | गेंहू के ज्वारो में एक हार्मोन एब्सीसिक एसिड (ए बी ए) पाया जाता है जो कंही और नहीं मिलता | डॉ॰ लिविंग्स्टन व्हीलर के अनुसार एब्सीसिक एसिड कैंसर उपचार में एक महतवपूर्ण तत्व होता है जो कैंसर को ठीक करता है |

कैसे उपयोग में ले 

जवारे का रस 60 से 120 ml प्रतिदिन या हर दुसरे दिन ले सकते है  | अगर आप किसी व्याधि से ग्रषित है तो यह मात्रा बढ़ा भी सकते है – इसे 30 से 60 ml दिन में तीन बार कर सकते है | इसका सेवन सप्ताह में 5 दिन करे | गेंहू के जवारे के रस के साथ किसी फल का रस भी मिला सकते है लेकिन ध्यान दे खट्टे फलो का रस न हो अर्थात निम्बू , संतरा और नमक दाल कर इसका उपयोग ना करे इससे इसके गुण चले जाते है |

यह पेय रोगी और स्वस्थ दोनों के लिए फायदेमंद है | इसे कोई भी पी सकता है | इसके सेवन से शरीर से विजातीय तत्व बहार निकलते है और शरीर निरोगी रहता है |

धन्यवाद 

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *